Breaking NewsInternational News

राम से महात्मा गांधी का था अमिट प्रेम, अपने राम की अयोध्या में दो बार आए थे बापू

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आत्मबल कहीं न कहीं उनके आराध्य श्रीराम में छिपा था। अनेक पुस्तकों और उनके कर्म से भी उनकी रामभक्ति की झलक मिलती है। शायद यही वजह रही कि अपने जीवन काल में वे दो बार राम की नगरी आए। पहली बार वे काशी विद्यापीठ की स्थापना के बाद ट्रेन से यहां आए थे और दूसरी बार हरिजन फंड जुटाने के लिए अयोध्या आए।

महात्मा गांधी से उनकी पार्टी कांग्रेस ने नाम तो लिया, राम नाम नहीं लिया

महात्मा गांधी का राम से अमिट प्रेम था। इसलिए यह भी कहा जाता है कि उन्होंने यहां आकर प्रभु राम की प्रतिमा के दर्शन भी किए थे, और पुजारियों से भगवान राम को खादी वस्त्र पहनाने का भी आग्रह किया था। किंतु इसकी प्रामाणिक पुष्टि नहीं होती है। 10 फरवरी 1921 को वे बनारस आए थे और वहां काशी विद्यापीठ के शिलान्यास के बाद ट्रेन से अयोध्या पहुंचे थे। देर शाम फ़ैज़ाबाद की सभा को संबोधित कर वे 11 फरवरी की सुबह अयोध्या के सरयू घाट पर पंडित चंदीराम की अध्यक्षता में हो रही साधुओं की सभा में पहुंचे। शारीरिक दुर्बलता और थकान के मारे उनके लिए खड़े होकर बोलना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उन्होंने सबसे पहले अपनी शारीरिक असमर्थता के लिए क्षमा मांगी, फिर बैठे-बैठे ही साधुओं को संबोधित किया।

150th Gandhi Jayanti : धर्मराज युधिष्ठिर बनाम महात्मा गांधी

उन्होंने कहा, ‘कहा जाता है कि भारतवर्ष में 56 लाख साधु हैं। ये 56 लाख बलिदान के लिए तैयार हो जाएं तो मुझे विश्वास है कि अपने तप तथा प्रार्थना से भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं। इसके बाद 1929 में वे अपने हरिजन फंड के लिए धन जुटाने के सिलसिले में एक बार फिर अपने राम की राजधानी आए। मोतीबाग में हुई सभा में उन्हें उस उक्त फंड के लिए चांदी की एक अंगूठी प्राप्त हुई तो वे वहीं उसकी नीलामी कराने लगे।

उन्होंने कहा था कि जो इस अंगूठी की सबसे ऊंची नीलामी लगाएगा, उसे वे खुद अपने हाथों से उसको अंगूठी पहनाएंगे। एक सज्जन ने 50 रुपये की बोली लगाई और नीलामी उन्हीं के नाम पर ख़त्म हो गई। तब बापू ने उन्हें अपने हाथ से अंगूठी पहनाई, लेकिन जब उन्होंने सौ का नोट दिया तो बापू ने बाकी वापस नहीं किया, यह कहकर कि वे दान का धन वापस नहीं करते। महात्मा गांधी की अयोध्या यात्रा का गहन अध्ययन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह कहते हैं कि बापू ने यहां भी सामाजिक परिवर्तन और आजादी की अलख जगाई थी। यह दोनों यात्राएं अनेक दस्तावेजों और राजकीय संग्रहालय में उपलब्ध हैं।

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button