मई, दीदी (ममता बनर्जी) गई………..पश्चिम बंगाल में बीते साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की चुनावी रैलियों में यह नारा एक अभिन्न हिस्सा बन गया था.
दो मई यानी चुनाव नतीजे के दिन दीदी तो कहीं नहीं गई लेकिन बीजेपी के तमाम केंद्रीय नेता ज़रूर बंगाल का रास्ता भूल गए. उस बात को ठीक एक साल बीत गए हैं. इस बीच, हुगली में पानी बह चुका है. इस दौरान बंगाल में बीजेपी भी लगातर बिखरती रही है.
पार्टी के वरिष्ठ नेता सरेआम एक-दूसरे की पोल खोलने में जुटे हैं और नेताओं में पार्टी छोड़ने की होड़ मच गई है. बीते एक साल के दौरान पार्टी के सात विधायक उससे नाता तोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में लौट चुके हैं. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 77 सीटें जीती थीं.
ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह का तीन दिनों का बंगाल दौरा काफ़ी अहम हो गया है. राजनीतिक हलकों में सवाल पूछा जा रहा है कि क्या शाह यहाँ अपने बिखरते कुनबे को एकजुट कर पाने में कामयाब होंगे?
उनके दौरे से ठीक पहले उत्तर 24 परगना ज़िले में बारासात के पंद्रह नेताओं ने एक साथ इस्तीफा दे दिया है. इससे यह सवाल ख़ुद भाजपा में भी उठने लगा है.
प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार मानते हैं कि कुछ मुद्दों पर नेताओं में नाराज़गी हो सकती है. लेकिन ऐसी दिक्क़तों और समस्याओं को पार्टी के भीतर निपटाना चाहिए, सार्वजनिक रूप से नहीं.
अमित शाह का यह दौरा राजनीतिक भी है और सरकारी भी. इस दौरान वो कुछ सरकारी कार्यक्रमों में भी शिरकत करेंगे और पार्टी के भी.
बीते साल विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह लगभग ग़ायब है. बीते साल मुकुल राय की टीएमसी में वापसी के साथ पार्टी बीजेपी छोड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो अब तक जारी है. अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग की तर्ज़ पर पार्टी के तमाम नेता अलग-अलग राग अलापते नज़र आ रहे हैं.
बीते एक साल के दौरान, जितने भी चुनाव हुए उन सब में पार्टी को मुँह की खानी पड़ी है. ताज़ा मामला आसनसोल संसदीय सीट का है, जहाँ उपचुनाव में पहली बार टीएमसी ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया.