| संवाददाता, धर्मेंद्र द्विवेदी |
🔹 प्रस्तावना
उत्तर प्रदेश के BASTI जिले में न्याय की गूंज उस वक्त सुनाई दी जब बाबा सच्चिदानंद को सात वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत से बरी कर दिया गया। उन पर उन्हीं की सेविकाओं ने बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। वर्षों तक चले इस मुकदमे में उन्होंने कानून का दृढ़ता से सामना किया, जेल की सजा झेली, आश्रम की कुर्की देखी, मगर अंततः सच की जीत हुई।
BASTI के संत कुटीर आश्रम के प्रमुख बाबा सच्चिदानंद पर 6 दिन के अंदर दो अलग-अलग बलात्कार के मुकदमे दर्ज कर दिए गए थे। आश्रम की जमीन और प्रतिष्ठा को निशाना बनाकर रची गई इस साजिश में बाबा ने आरोप लगाया है कि सेल्हरा गांव के पूर्व प्रधान कल्पनाथ चौधरी इसके मुख्य सूत्रधार हैं। बाबा के अनुसार, जमीन हड़पने और रंगदारी के लिए यह षड्यंत्र रचा गया था। न्यायालय ने जब सबूतों और दलीलों की जांच की, तो उन्हें सभी मामलों में बाइज्जत बरी कर दिया गया।
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🔹 केस का पृष्ठभूमि और BASTI में घटना की शुरुआत
यह घटना 2017 में BASTI जिले के सेल्हरा गांव स्थित संत कुटीर आश्रम से शुरू हुई थी। बाबा सच्चिदानंद, जो देशभर में दर्जनों आश्रम चलाते हैं, बस्ती जिले में विशेष रूप से सम्मानित माने जाते थे। लेकिन अचानक एक दिन, उनकी दो सेविकाओं ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया।
अचानक एक के बाद एक, मात्र 6 दिनों के अंतराल में दो बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो गए। उसके बाद हत्या और जमीन कब्जा करने की शिकायतें भी दर्ज कर दी गईं। बाबा को न केवल समाजिक बदनामी का सामना करना पड़ा, बल्कि पुलिस ने उन्हें तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उन्हें लगभग दो वर्ष जेल में रहना पड़ा, और इस दौरान उनके प्रमुख आश्रम की कुर्की भी कर दी गई।
बाबा ने आरोप लगाया कि यह सब पूर्व प्रधान कल्पनाथ चौधरी की चाल थी। उनके अनुसार कल्पनाथ एक अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति है, जिसने उनकी सेविकाओं को झूठे वादों और धमकियों से भ्रमित कर फर्जी FIR दर्ज करवाई।
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🔹 पुलिस विवेचना और कानूनी प्रक्रिया
बाबा सच्चिदानंद के अनुसार, जब एफआईआर दर्ज की गई, तो उसमें न तिथि थी, न घटना का स्पष्ट विवरण, न ही मेडिकल रिपोर्ट या अन्य प्रमाणिक साक्ष्य। बावजूद इसके, BASTI पुलिस ने उन पर केस दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया।
उनका कहना था कि उन्होंने कानून से मदद की गुहार की, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। वे लगातार कहते रहे कि यह राजनीतिक और व्यक्तिगत दुश्मनी का मामला है, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। बाबा का कहना है कि “पुलिस को मेरी बातों से नहीं, किसी और के इशारे पर काम करना था।”
वकील संजय उपाध्याय और राकेश ने जब केस को अदालत में मजबूती से रखा, तो पूरा परिदृश्य बदल गया। उन्होंने अदालत के सामने यह तथ्य रखे कि—
- शिकायत में कोई तिथि नहीं दर्ज है।
- पीड़िता ने अलग-अलग घटनाओं में विरोधाभासी बयान दिए।
- कोई फॉरेंसिक या मेडिकल सबूत उपलब्ध नहीं था।
- शिकायतकर्ता और कल्पनाथ चौधरी के बीच जमीन विवाद पहले से चल रहा था।
अंततः जज विजय कटियार ने इन सभी तथ्यों और दलीलों को संज्ञान में लिया और सभी आरोपों से बाबा सच्चिदानंद को निर्दोष घोषित कर दिया।
🔹 बाबा सच्चिदानंद का पक्ष और मीडिया से बातचीत
BASTI के मीडिया में पहली बार सामने आकर बाबा सच्चिदानंद ने कहा, “मैंने न तो किसी के साथ कोई गलत व्यवहार किया, और न ही किसी से कोई दुश्मनी। मेरा सिर्फ एक मकसद है—आश्रम में आध्यात्मिक कार्य और समाजसेवा। लेकिन कुछ लोग इस शांति को बर्दाश्त नहीं कर पाए।”
उन्होंने कहा, “अगर मैं रंगदारी दे देता, तो शायद ये सब न होता। लेकिन मैं झुका नहीं, और इसी वजह से मुझे जेल भेजा गया।” बाबा ने यह भी आरोप लगाया कि “मेरे चेले और सेविकाओं के खिलाफ भी हत्या के फर्जी मुकदमे करवाए गए ताकि मेरे नेटवर्क को तोड़ा जा सके।”
बाबा के अनुसार, BASTI जिले का संत कुटीर आश्रम वर्षों से क्षेत्र के लोगों के लिए धर्म और समाज सेवा का केंद्र रहा है। उनके सैकड़ों अनुयायी हैं जो उनकी सादगी, तपस्या और सेवा भावना को देखते हैं।
“ईश्वर के घर देर है मगर अंधेर नहीं,” बाबा ने कहा। आज जब उन्हें न्याय मिला, तो वह पूरे घटनाक्रम को एक ईश्वर की परीक्षा मानते हैं।
🔹 BASTI में बाबा की लोकप्रियता और आश्रम की भूमिका
बाबा सच्चिदानंद का BASTI जिले में बड़ा प्रभाव रहा है। उनके संत कुटीर आश्रम में न केवल धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, बल्कि सामाजिक कार्य भी जैसे—
- अनाथ बच्चों के लिए भंडारा
- निःशुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर
- युवाओं के लिए ध्यान और योग प्रशिक्षण
इस वजह से उनकी छवि एक समाजसेवी संत की बनी रही है। लेकिन जिस प्रकार से अचानक उन पर गंभीर आरोप लगे, उससे उनका जीवन ही नहीं, उनके अनुयायियों का विश्वास भी डगमगा गया था। आज जब BASTI की अदालत ने उन्हें न्याय दिया, तो उनके अनुयायियों में भी खुशी की लहर दौड़ गई।
🔹 न्यायिक टिप्पणी और अंतिम फैसला
जज विजय कटियार ने अपने फैसले में यह साफ कहा कि—
- पुलिस ने विवेचना में गंभीर त्रुटियाँ कीं।
- एफआईआर में कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।
- अभियोजन पक्ष आरोपी को दोषी सिद्ध करने में असफल रहा।
फैसले में जज ने कहा, “केवल आरोप लगाना पर्याप्त नहीं होता। अगर कोई व्यक्ति सामाजिक रूप से प्रभावशाली है, तो उसे बदनाम करना आसान हो सकता है, लेकिन अदालत में केवल प्रमाणों के आधार पर ही निर्णय होता है।”
इसलिए अदालत ने तीनों मामलों में बाबा को बरी कर दिया।
🔹 निष्कर्ष: न्याय की जीत, BASTI में संत की प्रतिष्ठा बहाल
7 वर्षों की लड़ाई के बाद BASTI जिले के बाबा सच्चिदानंद को अंततः न्याय मिला। यह केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि न्यायपालिका पर विश्वास का प्रतीक है। इस केस ने दिखा दिया कि झूठ कितनी भी दूर तक जाए, मगर सच अंततः जीतता है।
बाबा की प्रतिष्ठा बहाल हो चुकी है, आश्रम फिर से खुल चुका है, और अनुयायियों ने उनका स्वागत किया है। उन्होंने न केवल झूठे केसों का सामना किया, बल्कि समाज को भी यह संदेश दिया कि “डरिए मत, डटिए – सच आपके साथ रहेगा।”