प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने ताजिकिस्तान के लोगों को आजादी के तीसवें पर्व की बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस साल हम एससीओ की भी 20वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। अच्छी बात है कि इस संगठन में नए लोग भी जुड़ रहे हैं। नए साझेदारों के जुड़ने से एससीओ और भी क्रेडिबल बनेगा। पीएम ने इस मौके पर तीनों नए डायलॉग पार्टनर्स- सऊदी अरब, मिस्र और कतर का स्वागत किया।
कट्टरपंथ एक चुनौती, भविष्य के बारे में सोचने का वक्त
प्रधानमंत्री ने कहा कि एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संगठन के भविष्य के बारे में भी सोचने का अवसर है। इन समस्याओं का बढ़ता हुआ कारण कट्टरपंथ (रैडिकलाइजेशन) है। अफगानिस्तान में हालिया घटनाओं ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है। इस मुद्दे पर एससीओ को पहल लेकर काम करना चाहिए। अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो मध्य एशिया का क्षेत्र प्रोग्रेसिव कल्चर और वैल्यूज का गढ़ रहा है। सूफ़ीवाद जैसी परम्पराएं यहाँ सदियों से पनपी और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं। इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।
पीएम ने कहा, “मध्य एशिया की इस धरोहर के लिए एससीओ को कट्टरपंथ से लड़ने का एक साझा टेंपलेट बनाना चाहिए। भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में, इस्लाम से जुड़ी उदाहरवादी, सहिष्णु और समावेशी संस्थाएं और परम्पराएं मौजूद हैं। एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए। इस सन्दर्भ में मैं एससीओ के रैट्स मैकेनिज्म (RATS mechanism) द्वारा किए जा रहे उपयोगी कार्यों की प्रशंसा करता हूं।”