कानपुर मेट्रो में यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए कई देशों के अत्याधुनिक संयंत्रों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें जहां रूस की रेल दिखेगी तो जर्मनी का पावर मिलेगा। इटली के ब्रश काम आएंगे।
तीनों देशों के संयंत्रों के सही इस्तेमाल के लिए अपने देश के इंजीनियरों की तकनीक का कमाल भी नजर आएगा। सही मायने में आईआईटी से मोतीझील के बीच जिस रेल पटरी पर मेट्रो दौड़ेगी वो रूस से मंगाई गई है। अप-डाउन के ट्रैक के बीच में थर्ड रेल भी जर्मनी से मंगाई गई है। इससे मेट्रो ट्रेनों को पावर सप्लाई मुहैया होगी। पीले रंग की इस थर्ड रेल से लेकर बाकी संयंत्रों की असेंबलिंग भारत में की गई है और यहां के इंजीनियरों ने इसे अपनी कसौटी पर परखने के बाद ही हरी झंडी दी है।
हर मौसम को झेल सकेगा रेल ट्रैक
रूस से आई रेल पटरी की खासियत यह है कि हर मौसम को झेल सकती है। रेल फ्रैक्चर जैसी दिक्कतें नहीं आएंगी। ट्रेन को फुल स्पीड से आराम से दौड़ाया जा सकेगा। इटली के ब्रशों का इस्तेमाल ट्रेनों की धुलाई में होगा। पूरी ट्रेन इन ब्रशों के जरिए महज 5 मिनट में ही धुल जाएगी। इसे वॉशिंग प्लांट में लगाया जाएगा। कोरोना से बचाव के लिए न्यूयार्क की तकनीक पर अल्ट्रा वॉयलेट लैंप लगेंगे जिसे अपने देश में ही तैयार किया गया है। इस लैंप को डिपो में खड़ी ट्रेन में जलाया जाएगा। अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से पूरी ट्रेन सेनेटाइज हो जाएगी।
क्या है थर्ड रेल सिस्टम, क्या हैं फायदे
1. कानपुर मेट्रो परियोजना का परिचालन 750 वोल्ट डीसी थर्ड रेल सिस्टम से होगा।
2. इस सिस्टम में बिजली की सप्लाई ट्रैक के समानांतर बिछी थर्ड रेल सिस्टम से मिलेगी।
3. यह सप्लाई डायरेक्ट करंट (डीसी) होगी, तारों का कोई सेटअप बाहर से नहीं दिखेगा।
4. सिस्टम का मेंटेनेंस बहुत कम होता है, पतंगबाजी आदि से ट्रपिंग की आशंका नहीं रहती।
5. तार नहीं दिखाई देने से थर्ड रेल सिस्टम मेट्रो कॉरिडोर की खूबसूरती को बनाए रखता है।
6. इस सिस्टम के कारण मेट्रो ट्रेन बीच राह खड़ी नहीं होगी, बिजली कहीं बाधक नहीं बनेगी।