उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुटे हैं।
इसबीच यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बड़ा दांव खेलते हुए किसान दिवस के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के लिए भारत रत्न की मांग कर डाली है। चुनाव से ठीक पहले अखिलेश की इस मांग के राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं और अखिलेश की इस मांग का चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
चौधरी चरण सिंह को किसानों के मसीहा के तौर पर जाना जाता है। कई इतिहासकारों ने चौधरी को ‘भारत के किसानों का चैंपियन’ तक कहा है। जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक देश का प्रधानमंत्री रहते हुए चौधरी चरण सिंह ने किसानों के जीवन और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई अहम नीतियां बनाईं। कम समय के लिए पीएम रहते हुए भी चौधरी चरण सिंह ने किसानों के लिए कई योजनाएं चलाईं। इसके अलावा चरण सिंह द्वारा डिजाइन किया गया एक परिवर्तनकारी बिल 1960 का लैंड होल्डिंग ऐक्ट था। यह ऐक्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने लागू किया था।
आधी सीटों पर किसान तय करते हैं हार-जीत
किसानों के बीच में चौधरी चरण सिंह की काफी सकारात्मक छवि थी। उत्तर प्रदेश में किसानों के चुनावी गणित की बात करें तो यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से करीब 200 सीटों पर किसान हार और जीत तय करते हैं। इन किसानों में सभी जाति-वर्ग के लोग हैं। जातियों के नाम पर इतने बड़े वोटबैंक को एकसाथ नहीं लाया जा सकता है। लेकिन ये वोटबैंक अगर किसी मुद्दे पर एक हो सकता है तो वह है किसान। 2014 के लोकसभा चुनाव से पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट भाजपा के साथ आ गई थी, जिसका फायदा दो बार लोकसभा चुनावों में और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला था।
जाट बेल्ट को साधने के लिए जयंत के साथ आए थे अखिलेश
किसान आंदोलन के बाद अखिलेश को उम्मीद थी कि वह किसानों के इस वोटबैंक में सेंध लगा सकते हैं। इसी के चलते अखिलेश ने जयंत के साथ गठबंधन किया। हालांकि कृषि कानूनों को वापस लेकर बीजेपी ने एक बड़ा दांव चला। लेकिन फिर भी अखिलेश को उम्मीद है कि अगर किसानों को साध लिया गया तो 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बड़ा फायदा हो सकता है। इसी को देखते हुए अखिलेश किसानों के मसीहा माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह के नाम पर उन्हें साधने की कोशिश में लगे हैं।