महाराष्ट्र में डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) की नियुक्ति के मामले पर सुनवाई के दौरान सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार बार-बार नाम भेजकर यूपीएससी को दोष नहीं दे सकती। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने सवाल किया कि जब एक नवंबर को राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सीताराम कुंते खुद चयन समिति के सदस्य थे और बैठक में शामिल थे, तो एक सप्ताह बाद आठ नवंबर को वे यूपीएससी की समिति काे दोष देते हुए नए नाम पर विचार करने के लिए कैसे कह सकते हैं।
समिति ने महाराष्ट्र के डीजीपी के पद के लिए आईपीएस अधिकारी हेमंत नागराले, रजनीश सेठ और के वेंकटेशम के नामों की सिफारिश की थी, जो सुबोध जायसवाल के केंद्रीय जांच ब्यूरो में स्थानांतरण के बाद खाली पड़ा है। कुंते ने इन नामों के सुझाव पर हस्ताक्षर भी किए, लेकिन आठ नवंबर को यूपीएससी को पत्र लिखकर कहा कि समिति से फैसला लेने में गलती हुई है, समिति को कार्यवाहक डीजीपी संजय पांडे के नाम पर भी विचार करना चाहिए। इसके बाद से यूपीएससी और महाराष्ट्र सरकार में इसे लेकर विवाद चल रहा है। इस बीच हाईकोर्ट में अधिवक्ता दत्ता माने ने एक जनहित याचिका दायर कर यूपीएससी की तरफ से सुझाए गए अधिकारियों में से किसी को महाराष्ट्र सरकार का डीजीपी नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग थी।
माने के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट को बताया कि यूपीएससी से सिफारिशों पर पुनर्विचार करने के लिए कहकर महाराष्ट्र सरकार न केवल स्थायी डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी कर रही है, बल्कि प्रकाश सिंह मामले में पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी कर रही है।
चंद्रचूड़ ने दलील देते हुए कहा कि प्रकाश सिंह मामले के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य का डीजीपी स्थायी तौर पर नियुक्त होना चाहिए, कोई कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त नहीं हो सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल निश्चित होना चाहिए। सोमवार को केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि नाम सुझाए जा चुके हैं, इनपर पुनर्विचार का नहीं किया जा सकता। वहीं, महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता आशुतोष कुंभाकोणी ने कहा कि कुंते ने नामों पर पुनर्विचार के लिए इसी वजह से कहा, क्योंकि समिति से फैसला लेने में चूक हुई। समिति को कार्यवाहक डीजीपी के पांडे के ग्रेड, मूल्यांकन रिपोर्ट आदि का सही आकलन करना चाहिए।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि जिस समिति के मुख्य सचिव खुद एक सदस्य थे और सिफारिशों पर सहमत होने के बाद हस्ताक्षर कर रहे हैं, उसे एक सप्ताह बाद गलत कैसे कह सकते हैं। पीठ ने कहा कि नियम साफ है कि चयन समिति फिर से नाम नहीं सुझा सकती। इसके अलावा इस मामले गलती करने का दोष समिति या यूपीएएसी पर नहीं डाला जा सकता।