सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें मांग की गई है कि ताजमहल के ऊपरी और निचले हिस्से में बंद क़रीब 22 कमरे खुलवाए जाएं. याचिका में यह माँग भी की गई है कि पुरातत्व विभाग को उन बंद कमरों में मूर्तियों और शिलालेखों की खोज करने का भी आदेश दिया जाए.
उसमें ये भी दावा किया गया है कि 1631 से 1653 के बीच के 22 साल में ताजमहल बनाए जाने की बात सच्चाई के परे है और मूर्खतापूर्ण भी.
यह याचिका डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की है. वो अयोध्या के बहरामऊ के रहने वाले हैं. उन्होंने डेंटल साइंस की पढ़ाई की है और भाजपा की अयोध्या ज़िला समिति के सदस्य हैं और मीडिया कोऑर्डिनेटर भी.
हालाँकि वो दावा करते हैं कि उन्होंने यह याचिका ख़ुद दाख़िल की है और पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं है.
क्या कहना है याचिकाकर्ता का?
डॉ. रजनीश सिंह कहते हैं कि उन्होंने 2019 में पुरातत्व विभाग से जानकारी मांगी थी कि क्या इन कमरों को राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते बंद किया गया. विभाग ने उन्हें जवाब दिया कि इन कमरों को बंद रखने का कारण सिर्फ़ सुरक्षा का मसला है. उनका कहना है कि बाद में पुरातत्व विभाग ने उनकी चिट्ठियों का जवाब देना बंद कर दिया, तो वो ऐसी याचिका दाख़िल करने पर मजबूर हो गए.
डॉ. रजनीश सिंह ने बीबीसी को बताया, “मैंने कोर्ट की शरण ली और कहा कि आप उन लगभग 20 कमरों को खोल दीजिए. आपने भी देखा होगा कि उन्हीं कमरों की आड़ में हिन्दू कभी वहां जाकर हनुमान चालीसा पढ़ने लगते हैं, तो मुस्लिम भी अलग दावे करते हैं.”
वो कहते हैं, “ऐसे में जब वहां ऐसी घटनाएं होती हैं तो भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल होती है. वहां कोई भी घटना होती है तो वो इंटरनेशनल न्यूज़ बनती है. इसलिए मैंने ख़ुद की हैसियत से यह याचिका दाख़िल की कि इन सभी कमरों को एक बार खोल दीजिए.”
उनके अनुसार, “मैंने मांग की कि इसके लिए एक बार पुरातत्व विभाग की समिति गठित की जाए और उनकी इंस्पेक्शन रिपोर्ट पब्लिक में आने दिया जाए. मुझे लगता है कि ऐसा करने पर यह विवाद हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा. सबरीमाला में हमने देखा कि वहां जो न्यायालय का हस्तक्षेप हुआ तो विवाद ख़त्म हो गया. ऐसे तमाम विवाद हैं. उसमें न्यायालय ने ही हस्तक्षेप करके उन मामलों को ख़त्म किया.”