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नवंबर को धनतेरस का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। मान्यता है कि धनत्रयोदशी के दिन ही भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था। इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी बेहद शुभ मानी जाती है।
शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान त्रयोदशी तिथि पर भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए थे। इस दिन को धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि यह तिथि धन और वैभव प्रदान करने वाली है। धनतेरस को भगवान धन्वंतरी के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं।
भगवान धन्वंतरी को प्रिय है पीतल-
भगवान धन्वंतरी को भगवान विष्णु का ही एक अवतार माना जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हैं। दूसरी दो भुजाओं में औषधि और अमृत कलश लिए हुए थे। मान्यता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ था, क्योंकि भगवान धन्वंतरी को पीतल अति प्रिय है। मान्यता है कि इस दिन पीतल से बनी वस्तु की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना लाभ मिलता है।
पूजा-पाठ में पीतल का प्रयोग माना जाता है शुभ-
पीतल का निर्माण जस्ता और तांबा धातुओं के मिश्रण से किया जाता है। सनातन धर्म में पूजा-पाठ में पीतल से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है। महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार, सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का पात्र वरदान स्वरूप दिया था। जिसकी खास बात थी कि द्रौपदी चाहे कितने लोगों को भोजन करा दें, खाना घटता नहीं था।