पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक 2017 में क्या था वोटिंग का ट्रेंड? किन इलाकों की बदौलत 300 पार हुई थी BJP

उत्तर प्रदेश में चुनावी रणभेरी बच चुकी है। चुनाव तारीखों के ऐलान के बीच सभी दल अपनी-अपनी जीत और विरोधी की हार का दावा कर रहे हैं। हालांकि, जीत हार का फैसला तो 10 मार्च को मतगणना के साथ होगा। 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 300 से अधिक सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में काबिज हुई थी तो कोई भी अन्य दल 50 सीटों के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया था। आइए एक बार नजर डालते हैं पिछले चुनाव के नतीजों पर और समझने कि कोशिश करते हैं कि तब किस क्षेत्र में वोटिंग का क्या ट्रेंड रहा था।

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A Brief History Of BJP, In Its 40th Year
रोहिलखंड का क्या था रुख?
समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में रोहिलखंड की 52 में से 29 सीटों पर कब्जा किया था और पहले नंबर पर रही थी। लेकिन 2017 में सपा को यहां भारी नुकसान हुआ और पार्टी को आधी से भी कम 14 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी ने 38 सीटों पर कब्जा कर लिया। रोहिलखंड में भगवा की लहर कैसी थी इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2012 में पार्टी यहां महज 8 सीटें हासिल कर पाई थी। सपा को जहां 15 सीटों का नुकसान हुआ था तो बीजोपी को 30 सीटों का फायदा। 2017 में बसपा और कांग्रेस यहां एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई थी।

अवध में किसी हुई थी ‘शाम’?
अवध क्षेत्र में राजनीतिक रूप से कई अहम जिले लखनऊ, अयोध्या, कन्नौज, इटावा, मैनपुरी, औरैया, कानपुर, राय बरेली, अमेठी, उन्नाव, कौशाम्बी, हरदोई और बाराबंकी जैसे जिले आते हैं। इन क्षेत्रों की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अवध के तीन नेता इंदिरा गांधी, वीपी सिंह और अटल बिहार वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 2017 में इस क्षेत्र में तीसरे और चौथे फेज में मतदान हुआ था। यूपी के दूसरे हिस्सों की तरह बीजेपी का यहां भी प्रदर्शन बेहद शानदार रहा था। बीजेपी ने यहां की कुल 137 में से 116 सीटों पर कब्जा करके जीत सुनिश्चित कर ली थी। सपा को जहां केवल 11 सीटें मिलीं तो बीएसपी खात भी नहीं खोल पाई। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने अवध की 95 सीटों पर कब्जा किया था और बीजेपी को महज 12 सीटें मिली थीं। इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज जैसे इलाके भी अवध में आते हैं जो सपा के गढ़ माने जाते हैं। इसके बावजूद पार्टी को अवध में करारी हार का सामना करना पड़ा था।

Khursheed Khan Raju

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