मतलब एकदम भोकाल टाइट कर दिया । अब तो पूरी दुनिया में लोहा मनवा दिया । सबकी बोलती बंद हुई पड़ी है । इसे कहते हैं क्लीन स्वीप मतलब सूपड़ा साफ । मजाल है कि कोई आसपास भी फटकने की सोच सके । अरे बहुत बड़ी लकीर खींच दिए हैं हम लोग । इससे बड़ी भी खीचेंगे तो हम ही लोग बाकी तो सब नाम के हैं ।
हाल ही में एक संस्था आइक्यूएयर ने वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट जारी की है । चिंता की कोई बात नहीं है । अपना रिपोर्ट कार्ड एकदम लल्लनटॉप है । टॉप 30 में 22 तो अपने शहर हैं । गर्व से सीना चौड़ा हुआ जा रहा है । ये जो 22 शहर हैं यही हमारे देश की लाज रख लिए वरना तमाम तो लिस्ट से ही बाहर हैं । दिल्ली केवल देश की ही राजधानी नहीं बल्कि प्रदूषण के मामले में तो पूरी दुनिया की राजधानी है । दिल्ली वाले वैसे भी बेचारे जी जान से जुटे रहते हैं । दिन रात और खून पसीना एक किये हैं तब जाके ये सम्मान हासिल हुआ है । कोई हलुवा थोड़े है । दुनिया भर के न जाने कितने शहर इस दौड़ में रहे होंगे । लेकिन दिल्ली तो भैया दिल्ली है ।
वैसे भी प्रदूषण के मामले में हम लोगों की जागरूकता लाजवाब है । थोड़ा बहुत प्रदूषण गलती से कम भी हो जाये तो लोगों के पेट खराब होने लगते हैं । खाँसी, जलन के साथ बुखार तक आ जाता है । अब आप ही बताइये प्रदूषण बेचारा जाये तो जाये कहाँ । सब उसे हुर्र हुर्र करेंगे तब तो वो जीते जी मर जायेगा । उसके अंदर हीन भावना घर कर जायेगी । हो सकता है डिप्रेशन में चला जाये । हम भावना प्रधान देश के नागरिक हैं । मानवता, परोपकार तो हममें कूट कूट कर भरा है । जिसका कोई नहीं उसके हम । दुनिया भर के हजारों लाखों लोग न जाने कितने सालों से हमारी शरण में हैं । वैसे भी प्रदूषण ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा है । किसी से कुछ ले थोड़े ही रहा है बल्कि दे ही रहा है । और सच मानिए यही प्रदूषण है जो हम लोगों को कोरोना से बचाये रहा । अंदर से इतना मजबूत बना दिया है इसने कि कोरोना वोरोना जैसे वायरस छू भी न पाएंगे ।
प्रदूषण फैलाना तो वैसे भी हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है । हम लोग तो इतने इनोवेटिव हैं कि हमें डस्टबिन की भी जरूरत नहीं पड़ती । चलती फिरती सड़कें, गलियाँ ये सब एकदम प्राकृतिक डस्टबिन ही तो हैं । जहाँ चाहे वहाँ कूड़ा फेंकिये । हमारे यहां की सड़कों जैसा पीकदान दुनिया में मिलना नामुमकिन है । कुछ लोग तो इन्ही पीकों से न केवल सड़कों को बल्कि लोगों के कपड़े भी रंगते हैं । कुछ लोग तो अपने पड़ोसियों का इतना ध्यान रखते हैं कि अलसुबह अपने घरों से निकलने वाला कूड़ा इन्ही पड़ोसियों के गेट के सामने डाल जाते हैं ।
बाकि सार्वजनिक शौचालय चाहे जितने बनवा लीजिये आदमी जायेगा खुले में ही । खुले में करने में जिस आनन्द और परमसुख की प्राप्ति होती है वह अन्य किसी काम में मिल पानी असम्भव है । ऑर्गेनिक खाद तैयार करने की इससे बेहतर तरकीब हो ही नहीं सकती । कुछ लोग तो कूड़े के पीछे हाथ धोके ही पड़ जाते हैं । उसके जीते जी उसके बदन में आग लगा देते हैं । यह सरासर निर्दयता है, वहशीपना है । कुछ लोगों को तो ‘गाड़ी वाला आया घर से कूड़ा निकाल’ गाने से सख्त नफरत है । इसलिये जैसे ही ये गाना सुनाई देता है ये लोग घरों में छुप जाते हैं ।