किसी इनसान की संतानोत्पत्ति की क्षमता बहुत हद तक मौसम पर भी निर्भर करती है। तापमान में उतार-चढ़ाव से मानव शरीर में मौजूद हार्मोन के स्तर में आने वाला परिवर्तन इसकी मुख्य वजह है। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम इजरायल में हुए 4.60 करोड़ ब्लड टेस्ट के विश्लेषण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची है।
टीम ने पाया कि पीयूष ग्रंथि में पैदा होने वाले हार्मोन गर्मियों के अंतिम पड़ाव में चरम स्तर पर होते हैं। ये हार्मोन संतानोत्पत्ति की क्षमता से लेकर चयापचय क्रिया, दुग्धस्रवण और तनाव निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक पीयूष ग्रंथि के नियंत्रण में आने वाले अंग मौसम के हिसाब से प्रतिक्रिया करते हैं। वे सर्दियों या फिर बसंत ऋतु में टेस्टॉस्टेरॉन, एस्ट्राडियॉल, प्रोजेस्टेरॉन और थायरॉयड जैसे हार्मोन का स्त्राव तेज कर देते हैं। यह अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि मानव शरीर में एक मजबूत आंतरिक घड़ी होती है, जो मौसम के हिसाब से चलती है और उसी के आधार पर हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित करती है।
‘जर्नल पीएनएएस’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि हार्मोन उत्पादन पर मौसम के प्रभाव की असल वजह नहीं पता चल सकी है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि अन्य जीव-जंतुओं की तरह मानव शरीर भी कुछ खास तापमान में सामान्य जैविक क्रियाओं को सबसे बेहतरीन रूप में अंजाम देने की क्षमता रखता है। सर्दियों और बसंत ऋतु में इनसान की चयापचय क्रिया सुधरने से शारीरिक विकास और संतानोत्पत्ति की क्षमता के साथ ही तनाव का स्तर भी काफी हद तक बढ़ जाता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस अध्ययन में मुख्यत: चयापचय क्रिया, संतानोत्पत्ति की क्षमता और तनाव का स्तर निर्धारित करने वाले हार्मोन पर मौसम का प्रभाव आंका गया है। यह भी देखा गया है कि तापमान में उतार-चढ़ाव का हार्मोन के स्तर पर ज्यादा व्यापक असर नहीं होता। बावजूद इसके अध्ययन थायरॉयड और प्रजनन संबंधी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन में खासा मददगार साबित हो सकता है। डॉक्टर इस आधार पर मरीजों पर आजमाई जाने वाली दवाओं और उपचार पद्धतियों का निर्धारण कर सकते हैं।