दुनिया के तेल का एक बड़ा भंडार खाड़ी के मुसलमान देशों के पास है. इन देशों ने रूस की यूक्रेन पर चढ़ाई पर अब तक न्यूट्रल और सधी हुई प्रतिक्रिया दी है.
ये देश अपने दशकों के दोस्त अमेरिका के साथ पूरी तरह से खड़ नहीं दिख रहे हैं. उनकी प्रतिक्रिया पश्चिम और रूस के बीच एक संतुलन बनाए रखने जैसी है.
इस स्टैंड के पीछे ग्लोबल एनर्जी मार्केट में इन देशों के हित हैं.
रूसी हमले के अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आपूर्ति पर असर ने सबको चिंतित किया है. रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदी के बाद एक बार तो कच्चा तेल 140 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया था.
अमेरिका के रूस से तेल आयात न करने के निर्णय ने तेल की मार्केट की दीर्घकालीन स्थिरता को भी प्रभावित किया है.
ऐसी ख़बरें भी आई थीं जिनमें कहा जा रहा था कि यूएई पर हूथी विद्रोहियों के बढ़ते हमलों के बाद दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र में एक दूसरे का साथ देने का फ़ैसला किया था.
बाद में यूएई ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में रूस के यूक्रेन पर हमले वाले एक प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया था. क़तर और सऊदी अरब ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
क्या खाड़ी देश रूस की जगह लेंगे
अमेरिका के रूस से तेल ना खरीदने के फ़ैसले और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद ये बात उठने लगी है कि क्या खाड़ी देश रूस की कमी को पूरा करेंगे.
24 मार्च को सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कतर के ऊर्जा मंत्री साद बिन शरिदा अल-काबी ने कहा था कि उनका देश युद्ध में कोई पक्ष नहीं ले रहा है और वो यूरोप को गैस आपूर्ति करता रहेगा. लेकिन, उन्होंने कहा कि रूस की जगह लेना असंभव है.
इस दौरान यूएई, कुवैत और सऊदी अरब ने अमेरिका और दूसरी देशों की ओपेक के ज़रिए तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग को खारिज कर दिया.
रूस पर प्रतिबंधों के बीच अबु धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन ज़ायेद और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान दोनों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से फोन पर बात करने से इनकार कर दिया था. अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जरनल ने ये रिपोर्ट आठ मार्च को प्रकाशित की थी.
क़तर ने भी यूक्रेन रूस युद्ध में ख़ुद को तटस्थ रखने का प्रयास किया है और मसले के सैन्य हल से बचने को कहा है. क़तर ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने की भी पेशकश की थी.
इससे उलट कुवैत ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए सैन्य कार्रवाई की आलोचना की थी और कहा था कि रूस को यूक्रेन संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. कुवैत ख़ुद 1990 में इराक़ी हमले का शिकार रहा है.