कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने मंगलवार दोपहर राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए विपक्ष के साझे उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम की घोषणा कर दी है.
यशवंत सिन्हा ने इस बारे में आधिकारिक घोषणा होने से पहले ही ट्वीट करके संकेत दे दिए थे.
मंगलवार सुबह टीएमसी छोड़ने से पहले ममता बनर्जी का शुक्रिया अदा करते हुए सिन्हा ने लिखा है – “टीएमसी में उन्होंने मुझे जो सम्मान और प्रतिष्ठा दी, उसके लिए मैं ममता जी का आभारी हूं. अब एक समय आ गया है जब एक बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से हटकर अधिक विपक्षी एकता के लिए काम करना होगा. मुझे यकीन है कि वह इस कदम को स्वीकार करती हैं”
इससे पहले विपक्षी दलों के बीच शरद पवार, गोपालकृष्ण गांधी और फ़ारूक़ अब्दुल्ला के नामों पर चर्चा हुई थी. लेकिन इन लोगों ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया.
इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को शरद पवार के घर पर हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद आख़िरकार यशवंत सिन्हा के नाम का एलान कर दिया.
लेकिन सवाल उठता है कि कुछ साल पहले तक बीजेपी नेता रहे यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने अपने साझा उम्मीदवार के रूप में क्यों चुना.
विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को क्यों चुना
सिन्हा के राजनीतिक सफर को पिछले तीन दशकों से देख रहीं वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता मानती हैं कि विपक्ष ने सिन्हा को उनके प्रशासनिक रिकॉर्ड की वजह से चुना है.
वे बताती हैं, “विपक्ष के पास ऐसा कोई शख़्स नहीं था जिसे वह आगे ला सकते. क्योंकि उन्हें एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो इस चुनाव के लिए दमदार उम्मीदवार लगे. पहले गोपालकृष्ण गांधी का नाम आया था. उनके प्रति पूरे देश में सम्मान है. लेकिन उनका नाम हर बार आता है. और उनके जीतने का सवाल नहीं है. इसके बाद फ़ारूक़ अब्दुल्ला का नाम काफ़ी दमदार था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद विपक्ष ने यशवंत सिन्हा पर विचार किया.
उनके मामले में विपक्ष ने सिन्हा की विचारधारा को किनारे रखते हुए एक प्रशासन के रूप में उनके काम और अनुभव को तरजीह दी. वह इस पद के लिए एक दमदार नाम और चेहरा हैं, विदेश नीति आदि की उन्हें समझ है. मुझे लगता है कि इसी आधार पर ही विपक्ष में उनके नाम पर सहमति बनी.”
यशवंत सिन्हा को भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा राजनेताओं में गिना जाता है जिन्होंने राजनीति में आने से पहले प्रशासक के रूप में काम किया.
सन् 1960 में आईएएस बनने वाले यशवंत सिन्हा ने अपने चालीस साल से ज़्यादा लंबे राजनीतिक करियर में अलग-अलग सरकारों में विदेश मंत्री और वित्त मंत्री स्तर के शीर्ष पद संभाले हैं.
स्मिता गुप्ता बताती हैं कि वित्त मंत्री के तौर पर भी यशवंत सिन्हा को नियम-कायदों को मानने वाले सख़्त प्रशासक के रूप में देखा जाता था.