प्रस्तावना
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी एक ऐतिहासिक आदेश ने शिक्षा जगत में हलचल मचा दी है। इस आदेश के अनुसार टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) न केवल नए नियुक्त शिक्षकों के लिए, बल्कि सेवा में मौजूदा शिक्षकों के लिए भी अनिवार्य कर दी गई है। इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में लगभग दो लाख नॉन‑TET शिक्षक और देशभर में करीब दस लाख शिक्षक अपने नौकरी तथा प्रमोशन की संभावनाओं को लेकर गहरी चिंता में हैं।
News Time Nation Sultanpur इस रिपोर्ट के माध्यम से जानें इस फैसले के प्रभाव, शिक्षकों की चुनौतियाँ, संघों की भूमिका, और आगे क्या कदम उठाये जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या है?
- सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि TET पास करना अब अनिवार्य होगा — नए भर्ती होने वाले शिक्षकों के लिए, और सेवा में बने हुए शिक्षकों के लिए यदि वे प्रमोशन चाहते हैं।
- आदेश के अनुसार, जो शिक्षक RTE Act 2009 लागू होने से पूर्व नियुक्त हुए हैं और जिनके पास सेवा से सेवानिवृत्ति तक पाँच वर्ष से अधिक समय बचा हुआ है, उन्हें दो वर्षों का समय दिया गया है TET पास करने के लिए।
- यदि शिक्षक इस अवधि में TET पास नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें स्वैच्छिक या अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेनी होगी, जिसमें उनके टर्मिनल लाभ (terminal benefits) सुरक्षित होंगे। लेकिन उन सभी शिक्षकों को प्रमोशन नहीं मिलेगा यदि उन्होंने TET नहीं पास किया।
- एक राहत यह है कि जिन शिक्षकों को सेवानिवृत्ति तक पाँच वर्ष या उससे कम समय बचा है, उन्हें इस अनिवार्यता से कुछ क्षणिक अमुक स्थिति में राहत मिल सकती है, लेकिन प्रमोशन की स्थिति में उनकी स्थिति प्रभावित होगी।
शिक्षकों में निराशा और आपत्ति के कारण
शिक्षकों ने इस फैसले को कई दृष्टिकोणों से असम्मानित, अन्यायपूर्ण और जीवन‑योग्य नहीं माना है। कुछ प्रमुख कारण नीचे दिए हैं:
- सेवा की मध्य‑स्थिति में शर्त बदलना
कई शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें शासन द्वारा जारी अधिसूचनाओं, नियमों के आधार पर नियुक्त किया गया, जिनमें TET की अनिवार्यता नहीं थी। अब वह सेवा में रहते हुए इस परीक्षा देना चाहते हैं, जो कि उनके अनुसार अनुचित है। - आज की आर्थिक स्थिति
जो लोग वर्षों से शिक्षक हैं, उनकी आर्थिक ज़िम्मेदारियाँ होती हैं — परिवार, ऋण, बच्चों की पढ़ाई‑लिखाई आदि। यदि उन्हें नौकरी गंवानी पड़े या प्रमोशन से वंचित रहना पड़े, तो यह उनकी आजीविका पर गहरा असर डाल सकता है। - प्रशिक्षण और तैयारी की समस्या
शिक्षक संगठन कह रहे हैं कि परीक्षा की तैयारी के लिए संसाधन, समय और प्रशिक्षण की कमी है, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में या वे शिक्षकों के पास अन्य ज़िम्मेदारियाँ हों, तो अध्ययन करना कठिन है। - भविष्य की अनिश्चितता
यदि भविष्य के नियमों के अंतर्गत प्रमोशन न मिले, तो नौकरी एवं पेशेवर विकास में पिछड़ जाना है।
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की रणनीति
उत्तर प्रदेश में इस फैसले को लेकर प्राथमिक शिक्षक संघ सक्रिय हो गया है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चन्द्र शर्मा ने निम्नलिखित कदम उठाने की घोषणा की है:
- डाटा संग्रहण: सभी जिलाध्यक्षों से टीईटी, नॉन‑TET, बीटीसी, विशिष्ट बीटीसी, प्रशिक्षणमुक्त, इंटर पास, उर्दू मुअल्लिम आदि श्रेणियों का विस्तृत डाटा 12 सितंबर तक मांगा गया है ताकि प्रभावित शिक्षकों की सही संख्या पता चले।
- ज्ञापन सौंपना: 16 सितंबर को राज्य के सभी जिलों में जिलाधिकारियों को प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा जाएगा।
- आंदोलन की रूपरेखा: एक संयमित, चरणबद्ध संघर्ष की योजना तैयार की जा रही है। जिलाध्यक्षों, ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों की बैठकें आयोजित की जाएँगी।
- गठित समर्थन: संघ के विभिन्न विभागों, जैसे आदर्श शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन, युवा प्रकोष्ठ आदि, ने इस आंदोलन में पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है।
- स्थानीय स्तर की गतिविधियाँ: ब्लॉक संसाधन केंद्रों पर बैठकें, जनजागरण अभियान, शिक्षकों को सूचना देना, सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में मुद्दा उठाना आदि।
संबंधित राज्यों की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का असर पूरे देश में महसूस किया जा रहा है, और कई राज्य सरकारों ने प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है:
- ओडिशा: शिक्षा मंत्री नित्यानंद गोंड ने कहा है कि सरकार इस फैसले की समीक्षा करेगी और शिक्षकों के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाएगा। विशेष TET परीक्षा कराने की योजना है।
- केरल: वहाँ सरकार इस आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। शिक्षा मंत्री ने कहा कि यह आदेश पुराने शिक्षकों के साथ अनुचित व्यवहार है।
- महाराष्ट्र: वहां शिक्षकों ने कहा है कि परीक्षा की भूमिका, सिलेबस और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए, और नई व्यवस्था में परीक्षा‑निर्देश स्पष्ट हों।
Sultanpur में स्थिति
सुलतानपुर जिले में शिक्षक समुदाय की प्रतिक्रिया निम्नलिखित है:
- संघ के नेताओं ने जिला‑स्तर पर बैठकें शुरू की हैं जहाँ शिक्षक वर्ग ने व्यापक समर्थन दिखाया है।
- शिक्षक भवन, लखनऊ में जिलाध्यक्षों की आपात बैठक आहूत की गई है, जिसमें आंदोलन की रणनीति तैयार हो रही है।
- ब्लॉक‑स्तर की बैठकें (जैसे कुड़वार ब्लॉक संसाधन केंद्र) हो चुकी हैं, स्थानीय नेतृत्व ने शिक्षकों से संयमित स्वरूप में संघर्ष की अपील की है।
- शिक्षक समुदाय में यह भावना है कि न्यायालय का आदेश लागू करने से पहले सरकार को स्पष्ट रूप से ये बताना चाहिए कि किन शिक्षक नियुक्ति अवधि या अधिसूचना के अनुसार अलग‑अलग नियम लागू होंगे।
कानूनी और नीतिगत प्रश्न
यहाँ कुछ महत्वपूर्ण कानूनी और नीतिगत बिंदु हैं जिन्हें शिक्षक संगठन उठा रहे हैं:
- क्या सेवा में रहने वाले शिक्षक जब नियुक्ति हुई थी तब जारी अधिसूचनाएँ पूरी हो गई थीं, तब बाद में ऐसी परीक्षा अनिवार्य करना न्यायसंगत है?
- क्या अन्य सरकारी विभागों में भी ऐसी retroactive शर्तें लगायी जाती हैं जहाँ सेवा‑मध्य में प्रमुख शर्तों में बदलाव किया जाए?
- क्या सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में किसी राहत की व्यवस्था की है (जैसे सेवानिवृत्ति से पाँच वर्ष कम बचाने वालों हेतु)? हाँ, कुछ राहत दी गई है।
- अल्पसंख्यक स्कूलों की स्थिति: सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा फैसला सुनाया है कि हाल के निर्णयों के अनुसार TET अनिवार्यता अल्पसंख्यक द्वारा संचालित स्कूलों पर फिलहाल एक बड़े बेंच द्वारा तय किया जाएगा, क्योंकि RTE कानून और उसकी व्याख्या और उसके विस्तार को लेकर सवाल हैं।
संभावित समधान एवं आगे की राह
शिक्षक समुदाय और सरकार के बीच संतुलन बनाने के लिए कुछ सुझाए कदम निम्नलिखित हो सकते हैं:
- विशेष TET परीक्षाएँ आयोजित की जाएँ – केवल in‑service शिक्षक के लिए।
- परीक्षा पैटर्न और सिलेबस स्पष्ट हो – युवा और पुराने शिक्षक दोनों को जानकारी मिले की किस आधार पर परीक्षा होनी है।
- समय‑सीमा बढ़ाने की मांग – दो वर्ष का समय कुछ मामलों में ज्यादा कम हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहाँ तैयारी और संसाधन की कमी है।
- रिलीफ़ पैकेज – जो शिक्षक पूरी तरह तैयारी नहीं कर पाते, उन्हें कुछ राहत दी जाए, जैसे कि अस्थायी सेवाएँ, वित्तीय सहायता आदि।
- न्यायालय से पुनर्विचार की याचिकाएँ – यदि आदेश से व्यापक एवं गंभीर असमर्थताएँ हो रही हों, तो पुनर्विचार याचिकाएँ दायर की जा सकती हैं।
निष्कर्ष
News Time Nation Sultanpur के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सकारात्मक हो सकता है, लेकिन इस तरह की नीति के लागू होने से पहले सेवा में लंबे समय से लगे शिक्षकों की स्थिति, उनके जीवन‑यापन, न्यायिक एवं नैतिक मापदंडों पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है।