| संवाददाता, मो. तौफ़ीक़ |
Amethi जिले में सरकारी उपेक्षा के खिलाफ ग्रामीणों ने एकजुट होकर जो उदाहरण पेश किया है, वह न केवल प्रेरणादायक है बल्कि प्रशासन के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है। जहां सरकार की योजनाएँ केवल फाइलों में सिमटी हुई हैं, वहीं Amethi के संग्रामपुर क्षेत्र के ग्रामीणों ने खुद बांस और लकड़ी से एक वैकल्पिक पुल बनाकर अपनी जीवनशैली को आसान बना दिया।
🛤️ मालती नदी बनी परेशानी की जड़
यह मामला Amethi जिले के संग्रामपुर मार्ग स्थित टिकरिया-मालती नदी के पास का है। यह नदी लंबे समय से ग्रामीणों की दैनिक समस्याओं का कारण बनी हुई थी। बारिश के मौसम में नदी उफान पर आ जाती है, जिससे संग्रामपुर और टिकरिया गांव के बीच संपर्क टूट जाता है। काम, पढ़ाई और इलाज के लिए ग्रामीणों को कई किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता था।
👷♂️ थक हारकर ग्रामीणों ने खुद संभाली कमान
जब प्रशासन की ओर से कोई समाधान नहीं आया और लोगों की परेशानियाँ बढ़ती गईं, तब ग्रामीणों ने बांस, लकड़ी और रस्सियों की मदद से खुद ही एक वैकल्पिक पुल बना दिया। यह पुल अस्थायी जरूर है, लेकिन ग्रामीणों के दृढ़ संकल्प और सामूहिक प्रयास का प्रतीक बन गया है।
एक ग्रामीण रामसुमेर ने बताया:
“सरकार ने कई बार सर्वे किया लेकिन पुल नहीं बना। आखिरकार हम सबने मिलकर इसे खुद ही बना डाला।”
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📸 पुल निर्माण की झलकियाँ (गैलरी के लिए सुझाव):
- ग्रामीणों द्वारा बांस और लकड़ियों को नदी में स्थापित करते हुए
- बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं नए पुल से गुजरते हुए
- पुल के पास की प्राकृतिक स्थिति और क्षतिग्रस्त पुराना मार्ग
- नदी पार करते समय सुरक्षा के लिए बनाई गई रस्सी की पकड़
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⚠️ PWD की चेतावनी: जिम्मेदारी आपकी होगी
Amethi PWD विभाग ने इस स्वनिर्मित पुल पर आपत्ति जताते हुए चेतावनी दी है। अधिकारियों का कहना है कि यदि इस पुल से किसी प्रकार की दुर्घटना होती है, तो इसकी जिम्मेदारी ग्रामीणों की होगी, न कि विभाग की।
PWD अधिकारी का बयान:
“हमने ग्रामीणों को समझाया है कि यह अस्थायी और असुरक्षित संरचना है। इसमें कोई हादसा हुआ तो प्रशासन जिम्मेदार नहीं होगा।”
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🚶♂️ ग्रामीणों की दिक्कतें और मजबूरी
- स्कूल जाने वाले बच्चों को रोज़ 6-8 किमी अतिरिक्त चलना पड़ता था।
- महिलाओं को बीमार परिजनों को अस्पताल ले जाने में भारी कठिनाई होती थी।
- बारिश में नाव भी उपलब्ध नहीं रहती, जिससे कई बार मरीजों की हालत गंभीर हो जाती थी।
🧓 “पुल नहीं तो चुनाव नहीं”: नाराज़ ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव में पुल बनाने के वादे होते हैं, लेकिन जीतने के बाद जनप्रतिनिधि इस इलाके का रुख तक नहीं करते। अब उन्होंने तय किया है कि अगर इस बार भी पुल नहीं बना, तो वे आगामी चुनावों का बहिष्कार करेंगे।
🛠️ पुल निर्माण की ज़रूरत: प्रशासन कब जागेगा?
इस क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों से पुल की मांग की जा रही है। कई बार जनसुनवाई पोर्टल और तहसील दिवस में शिकायत की गई, लेकिन कार्रवाई शून्य रही। Amethi जैसे संसदीय क्षेत्र में ऐसी बुनियादी ज़रूरतों की अनदेखी विकास के दावों पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
📰 पूर्व में हुई घटनाएं और नुकसान
- 2021 में एक गर्भवती महिला को नदी पार कराने में देरी हुई और उसे समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाई।
- 2023 में दो बच्चों के बह जाने की भी घटना सामने आई थी, जब वे स्कूल से लौटते समय तेज़ बहाव में फंस गए थे।
- ग्रामीणों ने कई बार धरना-प्रदर्शन किया, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला।
🧾 प्रशासन का जवाब क्या है?
जब इस विषय पर Amethi जिला प्रशासन से पूछा गया, तो एक अधिकारी ने कहा:
“मामला हमारे संज्ञान में है। प्रस्ताव उच्च अधिकारियों को भेजा गया है, बजट स्वीकृति का इंतजार है।”
यह जवाब भी उतना ही पुराना है जितनी इस पुल की मांग।
🧑🏫 क्या कहती है विशेषज्ञ राय?
विकास नीति विशेषज्ञ प्रो. दिनेश कुमार का कहना है:
“यह मामला केवल Amethi की नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण भारत का है, जहाँ शासन की प्राथमिकता शहरी चमक होती है और गाँव इंतज़ार करते रह जाते हैं। ग्रामीणों द्वारा खुद पुल बनाना यह दर्शाता है कि वे अब सिर्फ ‘राह नहीं देखना चाहते’।”
🎯 फोकस कीवर्ड ‘Amethi’ का संदर्भ
Amethi, एक ऐसा जिला जो देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन जमीनी हकीकत में यह इलाका अब भी सड़क, पुल, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि “विकास के दावे” और “वास्तविकता” में कितना बड़ा अंतर है।
🔚 निष्कर्ष: अपनी मदद खुद ही करनी होगी?
Amethi के इन ग्रामीणों ने जो किया, वह समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक उदाहरण और चुनौती है। जब शासन विफल हो जाए, तो जनता को अपनी ज़रूरतें खुद पूरी करनी पड़ती हैं — यह स्थिति किसी भी लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।
सरकार को चाहिए कि वह केवल चेतावनी देने की बजाय तत्काल स्थायी और सुरक्षित पुल निर्माण की प्रक्रिया शुरू करे। ताकि ऐसे जुझारू लेकिन मजबूर नागरिकों को सम्मान और सुरक्षा दोनों मिल सके।