| संवाददाता, खुर्शीद खान राजू |
भारत के स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक इतिहास में कई रहस्यमयी घटनाएं घटित हुईं। कुछ घटनाएं ऐसी रहीं जिन्हें केवल संयोग कहा गया, और कुछ को भविष्यवाणी या फिर दिव्य श्राप का परिणाम माना गया। लेकिन जब एक ही दिन—गोपाष्टमी—पर एक ही परिवार के तीन शीर्ष नेता मारे जाएं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है: क्या यह सिर्फ संयोग था? या करपात्री महाराज का श्राप?
करपात्री महाराज: तप और त्याग की प्रतिमूर्ति
करपात्री जी महाराज, जिनका मूल नाम हरिनारायण ओझा था, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार से थे। वे जीवन भर सनातन धर्म की रक्षा और गोमाता के सम्मान हेतु समर्पित रहे। उन्होंने न केवल संतों और सनातन विचारधारा को एकत्रित किया बल्कि धर्म की रक्षा के लिए एक संगठित आंदोलन की भी नींव रखी।
जब इंदिरा गांधी पहुंची आशीर्वाद लेने
1966 के पहले, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थीं, वह करपात्री जी महाराज से आशीर्वाद लेने प्रयागराज पहुंचीं। वहां उन्होंने करपात्री जी को वचन दिया कि अगर वे प्रधानमंत्री बनीं, तो सबसे पहले गौहत्या निषेध कानून लाकर गोमाता की रक्षा करेंगी। करपात्री जी महाराज ने उस शर्त पर उन्हें आशीर्वाद दिया।
कुछ समय बाद, इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं, लेकिन उनका वादा अधूरा रह गया।
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गौहत्या के विरोध में ऐतिहासिक आंदोलन
जब कई बार याद दिलाने के बावजूद गौहत्या पर प्रतिबंध का कानून नहीं बना, तब करपात्री महाराज ने संत समाज, शंकराचार्यों और विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के प्रमुखों को एकजुट किया। 7 नवंबर 1966 (गोपाष्टमी) के दिन, देश भर के 10 लाख से अधिक संत, महिलाएं, नागरिक और साधु दिल्ली में संसद मार्च के लिए एकत्रित हुए।
आंदोलन का स्वरूप:
- प्रमुख नेतृत्व: करपात्री जी महाराज
- भागीदारी: चारों शंकराचार्य, नागा साधु, आर्य समाज, रामानुज, वल्लभ, नाथ, जैन, बौद्ध, सिख निहंग इत्यादि
- मार्ग: लालकिला मैदान → नई सड़क → चावड़ी बाजार → पटेल चौक → संसद भवन
- उद्देश्य: संसद के सामने गोहत्या निषेध कानून की मांग
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इंदिरा गांधी सरकार का क्रूर जवाब
इस शांतिपूर्ण और धर्मप्रेरित आंदोलन पर उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता के मद में चूर होकर अंधाधुंध गोलीबारी करवाई। इस गोलीबारी में:
- हजारों निर्दोष नागरिक, संत, महिलाएं और गायें मारी गईं
- ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार लगभग 10,000 से अधिक मौतें
- ट्रकों में शव, घायल और जीवितों को भरकर ले जाया गया
- लाशों को गुप्त रूप से फूंका या दफनाया गया
- दिल्ली में तत्काल कर्फ्यू लगाया गया
करपात्री जी का श्राप
इस रक्तरंजित त्रासदी के बाद, करपात्री जी महाराज मरी हुई गायों से लिपटकर रोए और श्राप दिया:
“मैं श्राप देता हूँ कि एक दिन तेरी देह भी इसी प्रकार गोलियों से छलनी होगी और तेरे कुल और दल का विनाश होगा। और इसके लिए मैं हिमालय से एक तपस्वी भेजूँगा जिसका नाम होगा नरेंद्र मोदी।”
यह श्राप केवल शब्द नहीं था; इतिहास ने इसे बाद में अपनी घटनाओं से स्वीकारा।
क्या यह केवल संयोग था?
अब आइये, देखते हैं कि करपात्री महाराज के इस श्राप के बाद क्या घटनाएं घटित हुईं:
1. संजय गांधी की मृत्यु
- तिथि: गोपाष्टमी
- विमान दुर्घटना में मृत्यु
- इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी मारा गया
2. इंदिरा गांधी की हत्या
- तिथि: गोपाष्टमी (31 अक्टूबर 1984)
- अपने ही अंगरक्षकों द्वारा गोलियों से छलनी की गईं
- शरीर के चिथड़े उड़ गए
3. राजीव गांधी की हत्या
- तिथि: गोपाष्टमी के निकट
- आत्मघाती हमले में मृत्यु
- इंदिरा गांधी के श्रापित वंश का तीसरा अंत
क्या यह केवल संयोग है कि गांधी परिवार की यह तीनों प्रमुख हत्याएं गोपाष्टमी या उसके आसपास हुईं?
नरेंद्र मोदी: वह तपस्वी?
करपात्री जी महाराज ने यह कहा था कि वह हिमालय से एक तपस्वी भेजेंगे, जो उस कुल और दल का नाश करेगा जिसने गौहत्या करवाई और संतों का अपमान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी:
- वर्षों हिमालय में साधना कर चुके हैं
- “कांग्रेस मुक्त भारत” का संकल्प लेकर आगे बढ़े
- गांधी परिवार के राजनीतिक प्रभाव को समाप्त कर चुके हैं
- 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस का कद घटता जा रहा है
- धर्म, गाय, संस्कृति और राष्ट्रवाद को केंद्र में लाकर राजनीति कर रहे हैं
क्या यह वही तपस्वी हैं जिनकी भविष्यवाणी करपात्री महाराज ने की थी?
गौ रक्षा आज: स्थिति और संघर्ष
वर्तमान में गौ रक्षा और उसके लिए बनाए गए कानूनों को लेकर समाज दो हिस्सों में बंटा है। जहां एक ओर धार्मिक और सामाजिक संगठनों की मांग है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए और देशव्यापी गौहत्या निषेध कानून बने, वहीं दूसरी ओर कुछ वर्ग इसे केवल राजनीति का हथियार मानते हैं।
लेकिन यह स्पष्ट है कि गौ रक्षा एक आस्था का विषय है, और करपात्री जी महाराज जैसे संतों ने इस आस्था के लिए अपने जीवन का बलिदान तक दे दिया।
निष्कर्ष: इतिहास और भविष्य का सत्य
News Time Nation Prayagraj की विशेष रिपोर्ट यह दर्शाती है कि करपात्री महाराज केवल एक संत नहीं थे, बल्कि इतिहास के उस अध्याय के लेखक थे जिसे भविष्य ने अक्षरशः सत्य किया। उनके श्राप, उनकी चेतावनियाँ और उनके संकल्प आज भी भारत के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में गूंज रहे हैं।
क्या यह केवल इतिहास है या एक चेतावनी?
क्या यह संयोग है या श्राप का प्रभाव?
आप स्वयं विचार कीजिए…