मेरठ में मेडिकल लापरवाही: दो साल के बच्चे की आंख के घाव पर टांकों की जगह फेवीक्विक लगाने का आरोप, जांच टीम गठित

मेरठ के भाग्यश्री अस्पताल में दो साल के बच्चे के इलाज में चौंकाने वाली लापरवाही सामने आई है। परिजनों का आरोप है कि बच्चे की आंख के पास लगे कट पर टांके लगाने के बजाय अस्पताल स्टाफ ने फेवीक्विक लगा दी। मामले की शिकायत पर सीएमओ ने दो सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी है, जो तीन दिन में रिपोर्ट सौंपेगी।

मेरठ में स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर देने वाली घटना सामने आई है। भाग्यश्री अस्पताल में एक दो वर्षीय बच्चे के उपचार में हुई कथित लापरवाही ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग के कामकाज पर गंभीर आरोप लगाए हैं। परिजनों का कहना है कि बच्चे की आंख के ऊपर लगी चोट को टांके लगाने के बजाय महज पांच रुपये की फेवीक्विक से चिपका दिया गया, जिससे उसकी आंख की रोशनी तक जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था।

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जागृति विहार एक्सटेंशन निवासी जसपिंदर सिंह ने बताया कि उनका दो साल का बेटा मनराज मंगलवार रात खेलते समय गिर गया था। गिरने से उसकी बाईं आंख के ठीक ऊपर लगभग एक सेंटीमीटर लंबा कट लग गया। बच्चे के रोने और खून बहने पर परिवार तुरंत उसे भाग्यश्री अस्पताल लेकर पहुंचा, जहां स्टाफ मौजूद था। परिजनों के अनुसार, अस्पताल स्टाफ ने चोट देखकर कहा कि फेवीक्विक ले आएं। जसपिंदर सिंह किसी आपात स्थिति की तरह तुरंत चिपकाने वाला गोंद खरीद लाए। आरोप है कि स्टाफ ने न तो घाव की सफाई की, न ड्रेसिंग की और सीधे कट वाले हिस्से को फेवीक्विक से जोड़ दिया। यहां तक कि जब पिता ने टिटनेस इंजेक्शन लगाने की बात कही तो मना कर दिया गया।

दर्द में तड़पता रहा बच्चा, दूसरे अस्पताल ले जाना पड़ा

बच्चे को घाव पर गोंद लगाने के बाद भी दर्द, जलन और बेचैनी बनी रही। जसपिंदर सिंह ने बताया कि रातभर बच्चा रोता रहा। अगले ही दिन सुबह वे उसे लोकप्रिय अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर इस बात को सुनकर हैरान रह गए कि किसी अस्पताल ने आंख के इतने पास लगे घाव पर फेवीक्विक लगा दी।

यहां डॉक्टरों ने पहले घाव से गोंद को साफ किया, फिर चार टांके लगाए और उचित ड्रेसिंग की। डॉक्टरों ने यह भी चेतावनी दी कि यदि फेवीक्विक आंख में चली जाती, तो रोशनी जाने का खतरा भी हो सकता था।

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परिजनों ने दी शिकायत, हुई जांच शुरू

गंभीर लापरवाही को देखते हुए जसपिंदर सिंह ने बुधवार को मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) कार्यालय में लिखित शिकायत दर्ज कराई। शिकायत मिलते ही सीएमओ डॉ. अशोक कटारिया ने दो सदस्यीय जांच समिति गठित की है। इसमें डिप्टी सीएमओ डॉ. महेश चंद्रा और पीएल शर्मा जिला अस्पताल के एक वरिष्ठ सर्जन को शामिल किया गया है। जांच टीम ने गुरुवार को बच्चे के पिता से फोन पर विस्तृत जानकारी ली और मामले की पुष्टि की। सीएमओ ने बताया – “शुक्रवार को भाग्यश्री अस्पताल के चिकित्सकों और स्टाफ के बयान लिए जाएंगे। रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर कड़ी कार्यवाई होगी।”

परिवार की नाराजगी: ‘आंख चली जाती तो कौन जिम्मेदार?’

पीड़ित बच्चे के पिता जसपिंदर सिंह का कहना है कि उन्होंने अपने बेटे को पूरी उम्मीद और भरोसे के साथ अस्पताल ले गए थे, लेकिन इलाज की जगह वहां लापरवाही और असंवेदनशीलता मिली। उन्होंने कहा -“अगर फेवीक्विक का गोंद आंख में चला जाता तो मेरे बच्चे की जिंदगी अंधेरी हो सकती थी। इतनी बड़ी लापरवाही को माफ नहीं किया जा सकता।” परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर सख्त कार्यवाई की मांग की है और कहा है कि मामले को किसी भी कीमत पर दबने नहीं देंगे।

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क्या कहते हैं चिकित्सा विशेषज्ञ?

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि आंख के समीप लगी चोट बेहद संवेदनशील होती है और इसमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी स्थिति में फेवीक्विक जैसे केमिकल आधारित चिपकाने वाले पदार्थ का उपयोग मेडिकल प्रैक्टिस में नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे:

  • आंख की कॉर्निया को स्थायी क्षति
  • गंभीर एलर्जी
  • इन्फेक्शन का उच्च खतरा
  • घाव का गलत तरीके से जोड़ना
  • ऊतक नुकसान

जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। भाग्यश्री अस्पताल प्रबंधन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पहले भी प्रबंधन पर लापरवाही और अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। जांच समिति की रिपोर्ट के बाद मामले की दिशा तय होगी।

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स्थानीय लोगों में बढ़ा आक्रोश

घटना सामने आने के बाद क्षेत्र में नाराजगी फैल गई है। कई लोग सोशल मीडिया पर अस्पताल की लापरवाही को लेकर सवाल उठा रहे हैं। यह मामला अब चर्चा का विषय बन चुका है और लोग स्वास्थ्य विभाग से कठोर कार्यवाई की मांग कर रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं। यह घटना न सिर्फ एक अस्पताल की लापरवाही का मामला है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल उठाती है। एक छोटे बच्चे की जान जोखिम में डालकर जो हरकत की गई, वह निंदनीय है और चिकित्सकीय मानकों के बिल्कुल खिलाफ है। जांच में जो भी दोषी पाए जाते हैं, उन पर सख्त कार्यवाई होना आवश्यक है ताकि मरीजों का भरोसा कायम रह सके।

Khursheed Khan Raju

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