उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से एक दिल को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जहां बेटे ने अपनी मां का शव लेने से इंकार कर दिया क्योंकि घर में बेटे की शादी हो रही थी। बेटे ने शव को चार दिन तक फ्रिजर में रखने की शर्त रखी, जबकि महिला के पति ने अंतिम संस्कार के लिए शव को घाट किनारे दफना दिया। यह घटना परिवार और समाज के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने न केवल स्थानीय लोगों को स्तब्ध कर दिया है, बल्कि पूरे प्रदेश में परिवार और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना उस समय उजागर हुई जब एक महिला की मौत के बाद उसके बेटों ने शव को घर लाने से इंकार कर दिया।
सूत्रों के अनुसार, महिला के बड़े बेटे के घर में बेटे की शादी चल रही थी। बड़े बेटे ने स्पष्ट रूप से कहा कि मृत महिला का शव घर लाने से अपशकुन होगा और शादी के कार्यक्रम में बाधा आएगी। उसने यह भी कहा कि चार दिन इंतजार कर लेने के बाद ही अंतिम संस्कार कराया जाएगा और तब तक शव को फ्रिजर में रखा जाए। इस घटना ने परिवार में भावनात्मक और नैतिक संकट को उजागर किया। हालांकि, महिला के पति ने स्थिति को संभालते हुए अपने विवेक और सामाजिक जिम्मेदारी के तहत निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पत्नी के शव को घर नहीं लाकर सीधे अपने गांव ले जाकर घाट किनारे दफनाया। यह कदम दिखाता है कि परिवार के सदस्य भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं, भले ही बेटों की ओर से असंवेदनशीलता देखने को मिली हो।

स्थानीय लोगों ने इस घटना को सुनकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि परिवार के प्रति यह उदासीनता न केवल व्यक्तिगत रिश्तों को कमजोर करती है बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों को भी चोट पहुंचाती है। बुजुर्गों और माता-पिता के प्रति यह रवैया न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि कानूनी और सामाजिक दृष्टि से अनुचित भी माना जा सकता है। क्या परिवार में संपन्न और खुशहाल जीवन होने के बावजूद संवेदनशीलता और मानवता को प्राथमिकता दी जाती है या नहीं। विवाह जैसे खुशी के अवसर पर माता-पिता के प्रति अपमानजनक व्यवहार न केवल अपशकुन मानता है, बल्कि यह समाज में नकारात्मक संदेश भी फैलाता है।

गोरखपुर में यह मामला स्थानीय प्रशासन और पुलिस के लिए भी एक चेतावनी बन सकता है कि पारिवारिक विवाद और संवेदनशील मामलों में समय रहते हस्तक्षेप की आवश्यकता है। यदि परिवार में किसी भी सदस्य के अत्याचार या उदासीनता से जीवन का नुकसान होता है, तो यह कानूनी रूप से गंभीर मुद्दा बन सकता है। मामले की मीडिया में चर्चा और सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कई सामाजिक संगठन और मानवाधिकार समूह इस घटना की निंदा कर चुके हैं। उनका कहना है कि बच्चों द्वारा माता-पिता के प्रति इस तरह की उदासीनता न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह नैतिक शिक्षा और पारिवारिक संस्कारों के प्रति समाज को सतर्क करने वाली घटना है।

गोरखपुर की यह घटना एक चेतावनी के रूप में सामने आई है कि जब परिवार के सदस्य अपने कर्तव्यों और नैतिक जिम्मेदारियों से विमुख हो जाते हैं, तो समाज और प्रशासन को मिलकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। माता-पिता के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि समाज की नैतिकता और मानवता की पहचान है। इस मामले से न केवल स्थानीय लोगों को बल्कि पूरे प्रदेश के परिवारों को यह संदेश मिलता है कि किसी भी परिस्थिति में माता-पिता और बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार रहना जरूरी है।