उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले को झकझोर देने वाले अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आए डायना क्लेयर हत्या मामले में 24 साल बाद एक बड़ा मोड़ आया है। न्यूजीलैंड की पर्यटक डायना की हत्या के दोषी धर्मदेव यादव की शेष सजा को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने माफ कर दिया है। 24 साल 3 महीने जेल में बिताने के बाद अब धर्मदेव रिहा होने की दहलीज पर खड़ा है। इस फैसले ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है – क्या समय की लंबाई गुनाह की गंभीरता को कम कर देती है?
1997 में न्यूजीलैंड की पर्यटक डायना राउटले क्लेयर हत्याकांड ने पूरे देश के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी हिला दिया था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी घूमने आई 24 वर्षीय डायना की मुलाकात स्थानीय टूरिस्ट गाइड धर्मदेव यादव से हुई। आपसी बातचीत और भरोसा जीतने के बाद धर्मदेव उसे गाजीपुर स्थित अपने घर ले गया। उसी घर में डायना की हत्या कर उसका शव कमरे में ही दफन कर दिया गया।
जब डायना गायब हुई तो न्यूजीलैंड सरकार और लोकल पुलिस तक मामला तेज हो गया। जांच के दबाव में धर्मदेव पकड़ा गया और उसकी निशानदेही पर पुलिस ने डायना का कंकाल बरामद किया। बाद में डीएनए जांच से पहचान की पुष्टि भी हो गई।

कई अदालतों से मौत की सजा, फिर उम्रकैद
इस जघन्य हत्या के बाद 2003 में वाराणसी सत्र न्यायालय ने धर्मदेव को फांसी की सजा सुनाई।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा।
हालांकि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने धर्मदेव की फांसी की सजा को बदलकर 20 साल का कठोर कारावास कर दिया। इसके बाद भी धर्मदेव लगातार जेल में बंद रहा और कुल मिलाकर उसने 24 साल 3 महीने जेल में बिताए।
जेल में अच्छा आचरण, कमेटी की सिफारिश और माफी
जेल प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, धर्मदेव का व्यवहार “संतोषजनक” पाया गया।
दया याचिका समिति ने उसकी सामाजिक परिस्थितियों, जेल में व्यवहार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सजा पूरी करने को ध्यान में रखते हुए उसे रिहा करने की सिफारिश की।
इसके बाद उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए धर्मदेव की शेष सजा माफ कर दी। आदेश के अनुसार, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है तो व्यक्तिगत मुचलका और जमानती कागज़ों पर उसे रिहा कर दिया जाएगा।

क्या यह फैसला सही है? बहस फिर शुरू
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील रहा क्योंकि पीड़िता विदेशी नागरिक थी। डायना के परिवार ने वर्षों तक न्याय की लड़ाई लड़ी और भारत में भी यह केस न्यायिक प्रणाली का महत्वपूर्ण उदाहरण बना।
अब जब धर्मदेव 24 साल बाद रिहाई की दहलीज पर है, कई सवाल फिर खड़े हो गए हैं—
- क्या जेल में बिटाए 24 साल इस जघन्य वारदात के लिए पर्याप्त हैं?
- क्या समय किसी अपराध की गंभीरता को कम कर देता है?
- क्या पीड़िता के परिवार को यह न्याय पूर्ण महसूस होगा?
- क्या ऐसी रिहाइयाँ अपराधियों को प्रेरित कर सकती हैं?
इन सवालों को लेकर सोशल मीडिया और कानूनी विशेषज्ञों के बीच चर्चा तेज है।

डायना की कहानी अभी भी जिंदा है
डायना क्लेयर अब इस दुनिया में नहीं – लेकिन उसकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। धर्मदेव की रिहाई ने इस केस को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। कानून का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि सुधार भी है लेकिन ऐसे मामलों में समाज हमेशा यह जानना चाहता है: क्या इंसाफ सच में पूरा हो गया? या अभी भी कहीं अधूरा है?