रिपोर्ट :- खुशबू मिश्रा
भारतीय रुपये की पहुंच अब केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि दुनिया के कई देशों तक तेजी से फैल रही है। जहां कभी भारत केवल 18 देशों के साथ रुपये में व्यापार करता था, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 34 हो गई है। यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती, रुपये की स्थिरता और वैश्विक बाजार में भारत के बढ़ते प्रभाव का संकेत देता है। रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से न केवल लागत कम होती है, बल्कि डॉलर पर निर्भरता भी घटती है, जिससे व्यापारिक संबंध और अधिक मजबूत बनते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही है, और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है भारतीय रुपये की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति। बीते कुछ वर्षों में भारत ने अपनी मुद्रा के वैश्विक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि पहले जहां भारत केवल 18 देशों के साथ रुपये में व्यापार करता था, अब यह संख्या बढ़कर 34 देशों तक पहुंच चुकी है। यह वृद्धि न केवल भारत की आर्थिक स्थिति का संकेत है, बल्कि रुपये की स्थिरता और विश्वसनीयता को भी दर्शाती है।

हाल ही में फॉरेक्स एक्सचेंज डीलर एसोसिएशन (FEDAI) द्वारा जारी आंकड़ों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) अधिकारियों ने निर्यातकों के साथ साझा किया। आंकड़ों में यह स्पष्ट हुआ कि जहां दुनिया भर के देशों में डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं, वहीं भारत ने रुपये में व्यापार को बढ़ावा देकर अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ नए अवसर विकसित किए हैं। निर्यातकों का कहना है कि रुपये का बढ़ता वैश्विक उपयोग भारत के लिए कई मायनों में लाभदायक है।

सबसे बड़ा लाभ यह है कि रुपये में लेनदेन होने से व्यापार सरल होता है और लागत कम होती है। जब किसी देश को बार-बार अपनी मुद्रा को डॉलर में कन्वर्ट करना पड़ता है, तो न केवल अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है, बल्कि विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव का जोखिम भी होता है। रुपया-आधारित लेनदेन इन सभी समस्याओं को खत्म कर देता है। यही वजह है कि भारतीय कंपनियां अब कम लागत पर व्यापार कर पा रही हैं, जिससे उनकी ग्लोबल मार्केट में प्रतियोगिता क्षमता बढ़ी है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया में डॉलर पर निर्भरता को लेकर कई देशों में अस्थिरता बढ़ी। राजनीतिक तनाव और डॉलर की कीमत में उतार-चढ़ाव ने कई देशों को अपनी व्यापारिक रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया। भारत ने इस स्थिति को अवसर में बदलते हुए रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने की रणनीति अपनाई। इससे न केवल व्यापारिक जोखिम कम हुआ, बल्कि भारत ने वैश्विक मुद्रा बाजार में अपना प्रभाव भी बढ़ाया।

आज भारतीय रुपया एशिया, यूरोप, अफ्रीका और ओशिनिया के कई देशों में स्वीकार किया जा रहा है। भारत जिन प्रमुख देशों के साथ रुपये में व्यापार करता है, उनमें शामिल हैं: ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, बेलारूस, बेल्जियम, बोत्सवाना, चीन, मिस्र, फिजी, आर्मेनिया, जर्मनी, गुयाना, इंडोनेशिया, जापान, केन्या, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, मालदीव, मॉरीशस, मंगोलिया, म्यांमार, न्यूजीलैंड, ओमान, कतर, रूस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, तंजानिया, UAE, युगांडा, UK और USA। इन देशों में भारतीय रुपये की स्वीकार्यता से आयात और निर्यात से जुड़े कार्य बेहद आसान हो गए हैं।

यह प्रगति भारत की आर्थिक मजबूती और वैश्विक रणनीति की सफल दिशा को दर्शाती है। रुपये की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति आने वाले वर्षों में भारत को और अधिक आर्थिक लाभ, निवेश संभावनाएं और व्यापारिक स्वतंत्रता प्रदान करेगी। यह सिर्फ मुद्रा की सफलता नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति का भी प्रतीक है।