रिपोर्ट : नफ़ीस खान
सुल्तानपुर जनपद का अलीगंज बाजार क्षेत्र इन दिनों एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। यहां भारतीय जनता पार्टी से बगावत कर निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ चुके एक नेता जी पर सार्वजनिक भूमि—तालाब, ग्राम समाज और कब्रिस्तान—पर कब्ज़ा करने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। स्थानीय लोगों ने इस मामले को लेकर शासन और जिला प्रशासन तक शिकायत भेजी है, जिससे पुराना विवाद एक बार फिर गर्मा गया है।
राजनीतिक बगावत से उपजा विवाद
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2022 के जिला पंचायत चुनावों के दौरान भाजपा से जुड़े नेता जी ने तब सुर्खियां बटोरीं जब पार्टी ने उनकी पत्नी, जो स्वयं एक भाजपा नेत्री हैं, को टिकट देने से इंकार कर दिया। टिकट न मिलने से नाराज होकर उन्होंने पार्टी के खिलाफ बगावत की और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर आए।
हालांकि नतीजों में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद पूर्व जिलाध्यक्ष द्वारा उनसे जुड़े कई कार्यकर्ताओं को पार्टी से निष्कासित भी किया गया था।
कुछ समय के लिए राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने के बाद, जिले में सत्ता संतुलन में बदलाव होने पर नेता जी ने फिर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी। अब वे लगातार जनता दरबार और बैठकें आयोजित कर रहे हैं, जिसमें स्थानीय समस्याओं को सुनने और अधिकारियों तक पहुंचाने का दावा करते देखे जाते हैं।
तालाब और ग्राम समाज की जमीन पर कब्ज़े के आरोप
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि नेता जी के परिवार द्वारा संचालित एक निजी स्कूल तालाब, ग्राम समाज और कब्रिस्तान की ज़मीन पर बने भूखंड में चलाया जा रहा है। वर्षों से चल रहे इस कब्ज़े को लेकर ग्रामीणों में नाराज़गी बनी हुई है।
सूत्रों के मुताबिक, इस प्रकरण पर पहले भी शिकायतें हो चुकी हैं, जिनकी जांच प्रशासनिक स्तर पर हुई थी। बताया जाता है कि एक लेखपाल को जांच में लापरवाही के चलते निलंबित भी किया गया था, परंतु अब तक कब्ज़ा नहीं हट सका है।
गांव के कुछ निवासियों का आरोप है कि सत्ता में करीबी संबंधों के कारण कार्यवाही ठंडी पड़ जाती है। वहीं, विरोध पक्ष का कहना है कि नेता जी का राजनीतिक प्रभाव इतना बढ़ गया है कि कोई खुलकर आवाज़ उठाने से डरता है।
लोक निर्माण और राजस्व विभाग की भूमिका पर सवाल
ग्राम पंचायत अलीगंज से संबंधित यह जमीन राजस्व अभिलेखों में तालाब और कब्रिस्तान के रूप में दर्ज है। बावजूद इसके, परिसर में पक्के निर्माण कार्य किए गए हैं और विद्यालय के नाम से दीवारों पर सरकारी योजनाओं के विज्ञापन तक लगाए गए हैं।
पीड़ितों का कहना है कि यह मामला केवल अतिक्रमण नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था पर सीधा प्रश्नचिह्न है। यदि सार्वजनिक भूमि पर कोई कब्ज़ा है, तो प्रशासन की जिम्मेदारी है कि उसे तत्काल हटवाया जाए।
सूत्रों के मुताबिक, स्कूल की जमीन की स्थिति पर पहले भी एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई थी। केस की सुनवाई के दौरान संबंधित विभागों को नोटिस जारी हुए थे, लेकिन तब भी स्थायी कार्रवाई नहीं हो सकी। फिलहाल इस मामले पर फिर से नई शिकायत सुल्तानपुर के मंडल और तहसील स्तरीय अधिकारियों तक पहुंची है।
जनता दरबार में सुनवाई, पर सवाल भी बढ़े
हाल ही में नेता जी ने अपने क्षेत्र के लोगों से संवाद के लिए ‘जनसुनवाई’ बैठकों की नई श्रृंखला शुरू की है। इन बैठकों में वे स्थानीय समस्याओं जैसे सड़क, पेयजल व बिजली कटौती पर चर्चा करते हैं, और दावा करते हैं कि “जनसेवा ही असली राजनीति है।”
हालांकि, विपक्षी और ग्रामीण इस पहल को दिखावा करार दे रहे हैं। एक स्थानीय नागरिक का कहना है, “जब खुद जनता की जमीन पर कब्ज़ा कर स्कूल चला रहे हैं, तो ऐसी सुनवाई किसके लिए है?”
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह सक्रियता आगामी पंचायत चुनावों की तैयारी का हिस्सा है। जनता के बीच पैठ दोबारा बनाने के लिए नेता जी सरकारी योजनाओं की भाषा में ‘जनसेवा अभियान’ चला रहे हैं।
जांच और प्रशासनिक कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों ने अब आरटीआई (सूचना के अधिकार) के तहत राजस्व विभाग से जमीन की स्थिति की प्रति मांगी है। इसके साथ ही जिला अधिकारी, उप जिलाधिकारी (SDM) और राजस्व निरीक्षक को लिखित शिकायतें भेजी गई हैं।
पत्र में यह भी उल्लेख है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो ग्रामीण पुनः उच्च न्यायालय की शरण लेंगे।
जिलाधिकारी कार्यालय से सूत्रों ने बताया कि शिकायत प्राप्त हुई है और जांच के लिए राजस्व टीम को निर्देश दिए गए हैं। अधिकारी ने कहा, “यदि कब्ज़े की पुष्टि होती है, तो नियमानुसार कठोर कार्यवाही की जाएगी।”
राजनीतिक समीकरण और जनता की अपेक्षाएं
यह मामला केवल अतिक्रमण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब जिले की राजनीति में भी चर्चा का प्रमुख विषय बन चुका है। भाजपा कार्यकर्ता जहाँ इस पूरे घटनाक्रम को “व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का परिणाम” बता रहे हैं, वहीं निर्दलीय खेमे के लोग इसे “जनता से जुड़ाव का प्रतीक” कह रहे हैं।
जनता के बीच अब यह प्रश्न गूंज रहा है कि क्या “जनसेवा का नारा” देने वाले नेता अपने ही क्षेत्र की सार्वजनिक भूमि को वापस जनता को सौंपेंगे या राजनीति की आड़ में यह विवाद और लंबा खिंच जाएगा।