सियासत में निष्ठाएं बदलना कोई नहीं बात नहीं है लेकिन सत्ता की चाह में फिलहाल सियासी दलों के बदलते सरोकार देखने को मिल रहे हैं। चाहे सपा हो या कांग्रेस या फिर बहुजन समाजपार्टी हर किसी ने सत्ता की चाहत में अपने पुराने सियासी सरोकारों से मुंह मोड़ लिया है। या यूं कहें समर्थक एक दायरे में ही ना सिमटे लिहाजा नया पैंतरा अपनाया जा रहा है।
अब मंदिरों में दर्शन की नई परिपाटी पर कांग्रेस
कभी दलितों, मुस्लिमों और ब्राह्मणों के सहारे सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस ने फिलहाल कास्ट की राजनीति को संकेतिक रूप से तौबा कर ली है। मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से घिरी रहने वाली कांग्रेस अब मंदिरों में दर्शन की नई परिपाटी पर चल रही है। ऐसा चुनावों में पहली बार नहीं किया जा रहा। पूर्व के चुनावों में राहुल गांधी के जनेऊधारी होने का मुद्दा खुद कांग्रेसी नेताओं ने गर्मा कर साफ्ट हिन्दुत्व का संदेश दिया था । कुछ ऐसी ही वजह रही कि वाराणसी की रैली में प्रियंका गांधी ने दुर्गा स्तुति का मंच से गान कर संदेश देने की कोशिश की कि वह भी खांटी हिन्दू हैं। यह कुछ उसी तर्ज पर हुआ जैसा पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी ने भाजपा का जवाब देते हुए किया था।
एम-वाई समीकरण को लेकर सावधानी बरतने की तैयारी में सपा
समाजवादी पार्टी हमेशा से एमवाई यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ के लिए जानी जाती रही है। लेकिन इस बार सपा ने एमवाई का अर्थ कुछ दूसरे ढंग से समझाने की कोशिश की है। एम को महिला और वाई को यूथ कहकर नए ढंग से व्याख्या की गई है। खुद अखिलेश यादव प्रेस कांफ्रेंसों में कहते रहे हैं कि सपा ने महिलाओं और यूथ के लिए सत्ता में रहते हुए खूब काम किए थे और यही इस बार भी समाजवादी पार्टी की ताकत बनेंगे। कहा जा रहा है कि सपा इस बार चुनावों में टिकट तय करने में भी एम-वाई समीकरण को लेकर सावधानी बरतने की तैयारी में है, ताकि विरोधियों के हमले और चुनावों के साप्रदायिक रुख लेने से रोका जा सके।