उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को कैसे बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है BSP की कमजोरी, यूं बिगड़ रहा गणित

BJP Protest BJP workers came on the road with liquor in their hands

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है। पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर तमाम दिग्गज नेताओं को भाजपा ने चुनाव प्रचार में उतार दिया है। दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी लगातार प्रदेश भर में अलग-अलग यात्राएं कर रहे हैं। जातीय सम्मेलनों से भी भाजपा और सपा एक-दूसरे को टक्कर देने की कोशिश में हैं। हालांकि इस बीच मायावती की निष्क्रियता चुनाव को लेकर अलग ही संकेत दे रही है। बीते तीन दशकों में यूपी का चुनाव हमेशा त्रिकोणीय मुकाबले वाला रहा है। कांग्रेस दो दशकों से हाशिये पर ही है। ऐसे में अब बसपा के भी बेहद कमजोर दिखने से राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं और इसका नुकसान सीधे तौर पर भाजपा को हो सकता है।

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इस समीकरण को समझने के लिए हमें 2017 के विधानसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करना होगा। तब बहुजन समाज पार्टी भले ही 19 सीटें जीत पाई थी, लेकिन उसे 22.23 फीसदी वोट मिले थे, जो भाजपा के बाद सबसे ज्यादा थे। वहीं सपा ने 21.82% वोटों के साथ 47 सीटें हासिल की थी। कांग्रेस को 6.25 पर्सेंट मतों के साथ सिर्फ 7 सीटें ही मिल पाई थीं। लेकिन अब 5 सालों में बसपा मजबूत होने की बजाय कमजोर होती दिखी है। उसके 19 में से सिर्फ तीन विधायक ही बचे हैं। मायावती खुद एक दर्जन विधायकों को पार्टी से बाहर कर चुकी हैं। इसके अलावा 3 साल में 4 बार प्रदेश अध्यक्ष बदल चुकी हैं।

कैसे बसपा की कमजोरी पहुंचाएगी भाजपा को नुकसान

यही नहीं चुनावी समर में भी उनकी सक्रियता काफी कम है। अब तक मायावती न तो कोई बड़ी रैली की है और न ही दूसरी पार्टी से टूटकर किसी नेता ने बसपा का दामन थामा है। साफ है कि मुख्य लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही दिख रही है और यही बात भगवा कैंप के लिए चिंता की वजह है। 2017 में भाजपा को 39.67% फीसदी वोट मिले थे और 312 सीटों पर जीत मिली थी। साफ है कि 60 फीसदी वोट भाजपा के खिलाफ था, जो बसपा, सपा और कांग्रेस समेत कई अन्य दलों में बंट गया था। अब जबकि बसपा कमजोर होती दिख रही है तो उसके हिस्से का बड़ा वोट सपा के खाते में जा सकता है।

Khursheed Khan Raju

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