छत्तीसगढ़ के बस्तर में लाल चींटी की चटनी का जिक्र विश्व स्तर पर होता है. बस्तर के आदिवासियों के लिए लाल चींटी की चटनी (चापड़ा) रोजाना खान-पान का हिस्सा है. लाल चींटी की चटनी के अलावा बस्तर के आदिवासियों के कई ट्रेडिशनल फूड हैं, जो दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. लेकिन क्या इसे रोजगार का साधन भी बनाया जा सकता है. यदि इसे रोजगार का हिस्सा बनाया जाए तो कमाई कितनी होगी? ऐसे तमाम सवाल जहन में आएंगे. इन सवालों का जवाब बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से बीजापुर की नेशनल हाईवे-63 के किनारे तिरतुम में संचालित ढाबा पर पहुंच कर मिल जाता है.
जगदलपुर 55 किलोमीटर तिरतुम में “आमचो बस्तर” ढाबा संचालित है. ढाबे के मालिक आदिवासी राजेश यालम हैं, जिनकी उम्र महज 23 साल है. इतनी कम उम्र में ही राजेश ने अपनी अलग पहचान न सिर्फ बस्तर, छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में बना ली है. राजेश ने बस्तर की विश्व प्रसिद्ध लाल चींटी की चटनी और बस्तरिया फूड से अपनी पहचान बनाई है. राजेश का आमचो बस्तर ढाबा संभवत: पूरे देश में एक मात्र ढाबा है, जिसके मेन्यू कार्ड में लाल चींटी की चटनी भी शामिल है.
बस्तरिया फूड को बनाया कमाई का जरिया
मैं बस्तर के पारंपरिक व्यंजनों के प्रचार-प्रसार के लिए देश भर में घूमता हूं. जहां भी आदिवासी मेला, पारंपरिक व्यंजनों का एक्जीबिशन आयोजित होता है, वहां मैं स्टॉल लगाता हूं. बस्तरिया फूड लोग पसंद करते हैं, लेकिन ये आसानी से लोगों को उपलब्ध नहीं हो पाता है. खुद बस्तर में ही तमाम होटल और ढाबों के मेन्यू कार्ड में रेगुलर आइटम के अलावा चाइनिज व्यंजनों की भरमार होती है. बस्तरिया फूड कहीं नहीं मिलता. इसलिए ही मैंने ऐसा ढाबा संचालित करने का निर्णय लिया, जहां बस्तरिया फूड लोगों को खिलाया जा सके. इस ढाबे से औसतन 2 से ढाई लाख रुपये प्रतिमाह का व्यवसाय हो जाता है.
इन बस्तरिया फूड से कमाई
राजेश बताते हैं आमचो बस्तर ढाबे में बस्तर की विश्व प्रसिद्ध लाल चींटी की चटनी (चांपड़ा), बांबू चिकेन, सुक्सी, भेंडा झोर, अंडा पुड़गा, टिकुर की मिठाई, महुआ लड्डू, माड़िया पेच, लांडा (चावल से बनी शराब), मौसम के अनुसार बोड़ा और पुटू, महुआ चाय समेत अन्य बस्तरिया व्यंजन का लुत्फ यहां लिया जा सकता है. केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह और अर्जुन मुंडा भी एक एक्जीबिशन में राजेश द्वारा बनाए महुआ का शराब और लाल चींटी की चटनी का स्वाद ले चुके हैं.