स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े के एलान ने उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में हलचल पैदा कर दी है. हालाँकि, वो अखिलेश यादव के साथ जाएँगे या नहीं इसे लेकर रहस्य बना हुआ है. उन्होंने ख़ुद इसकी घोषणा नहीं की है लेकिन अखिलेश यादव के उनके साथ तस्वीर आने के बाद से ही मौर्य को लेकर राजनीतिक नफ़ा-नुक़सान का आकलन शुरू हो गया है.
अटकलें लग रही हैं कि यूपी के विधानसभा चुनाव में वो किसका खेल बना और बिगाड़ सकते हैं?
स्वामी प्रसाद मौर्य की ताक़त क्या है?
मूलत: यूपी के प्रतापगढ़ ज़िले के रहने वाले 68 वर्षीय स्वामी प्रसाद मौर्य बीते करीब तीन दशकों से यूपी की राजनीति में सक्रिय हैं. पिछड़ा वर्ग और ख़ास तौर से कोइरी समाज में उनका अपना जनाधार है.
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार कुमार हर्ष बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा से लेकर पूर्वी यूपी में गोरखपुर तक कोइरी समाज का विस्तार है जो कुशवाहा, शाक्य और मौर्य, कोली नाम से जाने जाते हैं. उनका मानना है कि ‘स्वामी प्रसाद मौर्य इस गैर-यादव ओबीसी वोट को लाने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं.
यूपी के आगरा, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, मऊ, कुशीनगर, गोरखपुर, महाराजगंज में कोइरी या कुशवाहा समाज की बड़ी आबादी है. इन इलाक़ों में कुछ हज़ार वोटों का अंतर निर्णायक हो जाता है.
मायावती पर ‘बहनजी’ नाम की किताब के लेखक अजय बोस मानते हैं कि कुशवाहा आबादी वाली जिन सीटों पर काँटे की टक्कर होती है वहां स्वामी प्रसाद मौर्य की अहमियत बढ़ जाती है. यही वजह रही कि स्वामी प्रसाद मौर्य की पूछ हर पार्टी में रही और वो खुद इसे भुनाते भी रहे.