चीन अब तक अपनी दो कंपनियों- सिनोवैक और सिनोफार्म द्वारा विकसित कोरोना रोधी टीकों पर ही निर्भर है। इसे बदलने के लिए वह खुद की एमआरएनए वैक्सीन विकसित कर रहा है। सिनोवैक व सिनोफार्म के टीके परंपरागत तरीकों से विकसित किए जाते हैं। इनमें कोरोना वायरस के पूरे रूप होते हैं। इन्हें निष्क्रिय करने के लिए आजमाए गए तरीके से ये टीके बनाए गए हैं।
चीन की इन दोनों कंपनियों के टीके शुरू में लोगों को संक्रमित होने से बचाने में कारगर थे, लेकिन समय के साथ यह सुरक्षा कमजोर हो गई। ओमिक्रॉन के मामले में तो ये एक तरह से निष्प्रभावी रहे।इसी कारण चीन ज्यादा प्रभावी टीके बनाने के दबाव में आया। वायरस का संक्रमण रोकने के लिए चीन अब एमआरएनए वैक्सीन बनाएगा। एमआरएनए वैक्सीन बिलकुल अलग तरीके से काम करती है।
एमआरएनए वैक्सीन की यह है खासियत
ये टीके न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन की श्रेणी में आते हैं। इसमें बीमारी पैदा करने वाले वायरस या पैथोजन से आनुवंशिक तत्व उपयोग किया जाता है। इससे शरीर के अंदर वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रणाली तैयार होकर सक्रिय हो जाती है। पारंपरिक वैक्सीन में इसके लिए बीमारी पैदा करने वाले वायरस को ही मृत या निष्क्रिय करके शरीर में डाला जाता है, लेकिन एमआरएनए वैक्सीन में पैथोजन का जेनेटिक कोड शरीर में डाला जाता है। यह मानव कोशिका को वायरस के हमले की पहचान करके उसके बचाव के लिए रक्षात्मक प्रोटीन तैयार करने के लिए प्रेरित करता है। चूंकि एमआरएनए वैक्सीन में वायरस का किसी तरह का कोई जीवित तत्व नहीं डाला जाता है। इसलिए इससे बीमारी बढ़ने का खतरा नहीं होता।