Azamgarh-Rampur By-Election 2022 : आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है। दोनों सीटों पर सपा और भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। मतगणना 26 जून को होगी।
आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए आज सुबह 7 बजे से मतदान हो रहा है। दोनों सीटों पर मतदान के लिए वोटरों में उत्साह दिखाई दे रहा है। सुबह से ही बूथों पर वोटरों की कतार लगी हुई है। सुबह 9 बजे तक रामपुर में 7.86 फीसदी और आजमगढ़ में 9.21 फीसदी मतदान हुआ।
Azamgarh-Rampur By-Election 2022दोनों सीटों पर सपा और भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
मतगणना 26 जून को होगी। बसपा ने रामपुर में प्रत्याशी नहीं दिया है। आजमगढ़ में गुड्डू जमाली बसपा के उम्मीदवार हैं। सपा-भाजपा और बसपा तीनों अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। भाजपा ने दोनों सीटों पर इस बार अपनी पूरी ताकत झोंकी है। जबकि अखिलेश यादव ने खुद को उपचुनाव प्रचार से दूर रखा। वह न तो आजमगढ़ में प्रचार के लिए गए, न ही रामपुर में।
पिछले विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आजम खान द्वारा लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिए जाने के कारण आजमगढ़ और रामपुर की सीटों पर उपचुनाव कराना पड़ा है। समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ में बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव को मैदान में उतारा है जबकि भाजपा ने दिनेश लाल यादव निरहुआ को अपना प्रत्याशी बनाया है। निरहुआ ने 2019 का लोकसभा चुनाव भी आजमगढ़ से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें चुनाव हरा दिया था। इस बार निरहुआ और पूरी भाजपा उनकी जीत के दावे कर रही है।
आजम खान के गढ़ रामपुर में समाजवादी पार्टी ने उन्हीं के करीबी आसिम रजा को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने घनश्याम लोधी पर दांव लगाया है। घनश्याम लोधी भी आजम खान के करीबी रह चुके हैं। वह 2004 में एमएलसी और 2007 में एमएलए बने। 2009 का लोकसभा चुनाव वह हार गए थे। सपा से पहले घनश्याम लोधी बसपा में भी रह चुके हैं। 2022 में ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की है। रामपुर में आजम खान सेहतमंद न रहते हुए भी चुनाव प्रचार में काफी सक्रिय रहे। शायद यह पहला मौका है जब कांग्रेस का सबसे बड़ा स्थानीय चेहरा बिना पार्टी छोड़े पूरे चुनाव में भाजपा के साथ रहा। अब देखना यह है कि पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां द्वारा मुस्लिमों से आजम और सपा को नकारने के लिए खुले तौर पर की गई अपील कितनी कारगर रहती है। फिलहाल माना जा रहा है मुकाबला सपा-भाजपा के बीच सिमटा हुआ है।