संवाददाता, धर्मेंद्र द्विवेदी
उत्तर प्रदेश का बस्ती (Basti) जिला हमेशा से प्राकृतिक आपदाओं और खासतौर पर घाघरा नदी के कटान की समस्या से जूझता रहा है। हर वर्ष बरसात के मौसम में नदी का तेज प्रवाह गांवों, खेतों और तटबंधों को प्रभावित करता है। ग्रामीणों के समक्ष रोज़ी-रोटी और अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है। हाल ही में बस्ती जिले के विक्रमजोत विकास खंड के अंतर्गत कई गांवों के ग्रामीणों ने अपनी समस्या का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से समाजसेवी चंद्रमणि पाण्डेय सुदामा से मदद की गुहार लगाई।
ग्रामीणों की पीड़ा और सोशल मीडिया की अपील
विक्रमजोत तटबंध निर्माण कार्य पूर्ण होने के बावजूद भी तटबंध और सरयू नदी के बीच बसे गांव लगातार कटान की चपेट में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनका घर-बार, खेत और बुनियादी सुविधाएँ खतरे में हैं।
इसी कड़ी में पकड़ी संग्राम गांव के लोगों ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपील की। इस अपील में उन्होंने कहा कि यदि कटान नहीं रुका तो पूरा गांव नदी में समा जाएगा। ग्रामीणों का दर्द साफ झलकता है – न केवल उनकी खेती उजड़ रही है बल्कि उनके आशियाने भी मिट्टी में मिलते जा रहे हैं।
चंद्रमणि पाण्डेय – उम्मीद की किरण
ग्रामीणों ने यह अपील किसी सामान्य व्यक्ति से नहीं बल्कि समाजसेवी चंद्रमणि पाण्डेय से की है, जिन पर वर्षों से लोगों का भरोसा कायम है।
चंद्रमणि पाण्डेय ने अपने दशकों लंबे संघर्ष के दौरान कई गांवों को कटान से बचाया है। उन्होंने कल्याणपुर, बाघानाला, और दुबौलिया स्थिति चांदपुर कटरिया जैसे गांवों में ठोकर व स्पर बनवाकर कटान पर नियंत्रण कराया। उनकी मेहनत और सामाजिक सक्रियता की वजह से हजारों ग्रामीण आज सुरक्षित जीवन जी रहे हैं।
ग्रामीणों के अनुसार – “जब भी घाघरा का पानी गांवों को निगलने लगता है, चंद्रमणि पाण्डेय ही हमारी आवाज बनते हैं और प्रशासन तक बात पहुँचाते हैं।”
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प्रशासन को अवगत कराया गया
ग्रामीणों की अपील को गंभीरता से लेते हुए चंद्रमणि पाण्डेय ने तत्काल अधिशासी अभियंता, बाढ़ खंड दिनेश कुमार को मामले से अवगत कराया। उन्होंने जनहित में कटान रोधी कार्य को सुनिश्चित कराने की अपील की।
चंद्रमणि पाण्डेय का कहना है कि –
- यदि जिम्मेदार अधिकारी समय रहते कदम उठाएँ,
- अवैध खनन पर अंकुश लगाएँ,
- और नदी के मध्य में जमे मलबे की समय-समय पर ड्रेजिंग (खुदाई व सफाई) कराई जाए,
तो कटान की विभीषिका पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
घाघरा नदी और बस्ती की कटान समस्या
बस्ती (Basti) जिले के लिए घाघरा नदी किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन इसका कटान हर साल गांवों को उजाड़ देता है। कई बार तो पूरा गांव नदी में समा जाता है और लोग विस्थापित हो जाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि –
- नदी के किनारे बसे गांवों की सुरक्षा के लिए स्थायी तटबंध और कटानरोधी संरचनाएँ बनानी होंगी।
- लगातार निगरानी तंत्र बनाना होगा ताकि किसी भी आपदा की स्थिति में प्रशासन तत्काल कार्रवाई कर सके।
- स्थानीय स्तर पर जनभागीदारी भी जरूरी है, क्योंकि ग्रामीणों की सक्रियता से ही प्रशासन पर दबाव बन पाता है।
ग्रामीणों की उम्मीद और संघर्ष
कटान प्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें अब सिर्फ चंद्रमणि पाण्डेय से ही उम्मीद है। उनका मानना है कि –
- उन्होंने हमेशा ग्रामीणों के हित में आवाज उठाई।
- प्रशासनिक अधिकारियों से सीधी बात करके समाधान खोजा।
- गांव-गांव जाकर समस्या को समझा और योजनाएँ बनवाईं।
यही कारण है कि ग्रामीण सोशल मीडिया के जरिए उन्हें पुकार रहे हैं।
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बस्ती (Basti) जिले के लिए घाघरा कटान कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन यह समय-समय पर प्रशासन की लापरवाही और अपर्याप्त योजनाओं के कारण और गंभीर रूप ले लेती है। इस बार भी ग्रामीणों की आवाज सोशल मीडिया से उठकर समाजसेवी चंद्रमणि पाण्डेय तक पहुँची है।
उनकी सक्रियता और जिम्मेदार अधिकारियों को दिए गए सुझावों से उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही कटानरोधी कार्य शुरू होंगे और प्रभावित गांवों को राहत मिलेगी।
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब प्रशासनिक तंत्र सुस्त पड़ जाता है, तब समाजसेवी और जनता के बीच विश्वास का रिश्ता ही लोगों को जीने की उम्मीद देता है।
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