लखीमपुर पोस्टमार्टम हाउस: शवों के पोस्टमार्टम के लिए परिजनों से डीजल के पैसे की मांग!

लखीमपुर शहर का पोस्टमार्टम हाउस एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार मामला बेहद गंभीर है। पोस्टमार्टम हाउस की अव्यवस्था और कर्मचारियों की संवेदनहीनता ने मृतकों के परिजनों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। हाल ही में, लखीमपुर के पोस्टमार्टम हाउस में बिजली की समस्या के चलते शवों का समय पर पोस्टमार्टम नहीं हो पाया, और कर्मियों ने जनरेटर में डीजल के लिए मृतकों के परिजनों से पैसे की मांग की। यह घटना प्रशासन और स्वास्थ्य सेवाओं की दशा पर कई सवाल खड़े करती है।

अव्यवस्था और प्रशासनिक अनदेखी

लखीमपुर का पोस्टमार्टम हाउस पहले भी अपनी अव्यवस्था के कारण चर्चा में रहा है। चाहे वो शवों के सड़ने का मामला हो या शवों के रख-रखाव में लापरवाही की घटनाएं, इस संस्थान में अव्यवस्था आम बात हो गई है। इसके बावजूद प्रशासनिक कार्यवाही न के बराबर रही है। पोस्टमार्टम हाउस में आए दिन बिजली आपूर्ति में बाधा आती रहती है, और इस बार यह समस्या तब गहराई जब कर्मियों ने जनरेटर चालू करने के लिए डीजल के पैसे मांगने शुरू कर दिए।

जनरेटर में तेल नहीं, पोस्टमार्टम में देरी

इस बार मामला तब शुरू हुआ जब निघासन के मझगई और शारदानगर के भरतपुर निवासी मृतकों के परिजन पोस्टमार्टम कराने के लिए लखीमपुर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे। लेकिन बिजली की सप्लाई ठप हो जाने के कारण पोस्टमार्टम का काम ठप हो गया। पोस्टमार्टम हाउस के कर्मियों ने परिजनों से साफ कह दिया कि लाइट नहीं है और जनरेटर में डीजल नहीं है, जिसकी वजह से शवों का पोस्टमार्टम नहीं किया जा सकता। यह सुनकर परिजन हैरान रह गए और घंटों इंतजार करते रहे।

मृतकों के परिजनों से पैसे की मांग

सबसे शर्मनाक स्थिति तब आई जब पोस्टमार्टम हाउस के कर्मचारियों ने परिजनों से डीजल के लिए पैसे की मांग की। जनरेटर में तेल डालने के लिए पैसे मांगना पोस्टमार्टम हाउस के कर्मियों की संवेदनहीनता की हदें पार कर चुका है। मझगई और भरतपुर के मृतकों के परिजनों ने आरोप लगाया कि पोस्टमार्टम करने के लिए कर्मचारियों ने उनसे पैसे मांगे हैं। यह मांग ऐसे वक्त की गई, जब वे पहले से ही अपने प्रियजनों की मौत से आहत थे। धौरहरा सांसद आनंद भदौरिया ने भी इस मुद्दे पर नाराजगी जताई और इसे प्रशासन की बड़ी चूक माना।

सांसद का दौरा और नाराजगी

घटना के दौरान धौरहरा सांसद आनंद भदौरिया पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे और उन्हें जब इस स्थिति के बारे में पता चला, तो वे भी बेहद नाराज हो गए। सांसद ने साफ कहा कि वह इस मामले को जिलाधिकारी के सामने उठाएंगे और जो भी कर्मी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। सांसद ने परिजनों को भरोसा दिलाया कि उनकी शिकायत को गंभीरता से लिया जाएगा और इस तरह की घटनाएं दोबारा नहीं होंगी।

प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल

यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं में हो रही लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी को स्पष्ट करती है। शवों के पोस्टमार्टम जैसे संवेदनशील कार्यों के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली और डीजल की कमी, यह दर्शाती है कि पोस्टमार्टम हाउस में अव्यवस्था चरम पर है। सवाल उठता है कि पोस्टमार्टम जैसी जरूरी सेवाओं के लिए भी अगर परिजनों से पैसे मांगने पड़ रहे हैं, तो प्रशासन आखिर कर क्या रहा है?

पोस्टमार्टम हाउस की स्थिति

यह कोई पहली बार नहीं है जब लखीमपुर के पोस्टमार्टम हाउस में इस तरह की लापरवाही सामने आई हो। इससे पहले भी यहां शवों के सड़ने और समय पर पोस्टमार्टम न होने की घटनाएं हो चुकी हैं। कई बार तो शवों को कई दिनों तक बिना पोस्टमार्टम किए रखा जाता है, जिससे उनमें कीड़े पड़ जाते हैं। परिजन जब भी शिकायत करते हैं, तो उन्हें एक ही जवाब मिलता है – “बिजली नहीं है” या “डॉक्टर मौजूद नहीं हैं।”

परिजनों की स्थिति

ऐसी घटनाओं में सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं मृतकों के परिजन, जो पहले ही अपने प्रियजनों के निधन से आहत होते हैं। पोस्टमार्टम हाउस में ऐसी घटनाएं उनके दर्द को और बढ़ा देती हैं। मझगई और भरतपुर के परिजनों ने इस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ आवाज उठाई और मांग की कि इस तरह की लापरवाही पर रोक लगाई जाए।

प्रशासन की भूमिका और प्रतिक्रिया

हालांकि सांसद ने इस मामले को जिलाधिकारी के सामने उठाने का आश्वासन दिया है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या वास्तव में इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी बाकी घटनाओं की तरह दबकर रह जाता है। स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि पोस्टमार्टम हाउस जैसी संवेदनशील जगहों पर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

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लखीमपुर के पोस्टमार्टम हाउस की यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं में हो रही लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी को उजागर करती है। मृतकों के परिजनों से डीजल के लिए पैसे मांगना न केवल अव्यवस्था को दर्शाता है, बल्कि कर्मचारियों की संवेदनहीनता का भी परिचायक है। इस मामले में प्रशासन की सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और पोस्टमार्टम जैसी आवश्यक सेवाओं में सुधार हो सके। सांसद आनंद भदौरिया द्वारा मामले को गंभीरता से लेना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जल्द से जल्द सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए।

Deepak

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