सुल्तानपुर संवाददाता :- अंकुश यादव
सुल्तानपुर में लखनऊ के प्लॉट घोटाले से जुड़े एक बड़े मामले में सीजेएम नवनीत सिंह की अदालत ने पुलिस की क्लीनचिट रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। अदालत ने विवेचना को संदिग्ध मानते हुए नगर कोतवाल को निष्पक्ष अग्रिम जांच का आदेश दिया है। वहीं संबंधित क्षेत्राधिकारी को विवेचना की निगरानी करने और 5 दिसंबर तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए गए हैं।
सुल्तानपुर जनपद में लखनऊ में प्लाट दिलाने के नाम पर दर्जनों निवेशकों से लाखों रुपये हड़पने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बहुचर्चित ठगी प्रकरण में पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) नवनीत सिंह की अदालत ने विवेचक द्वारा प्रस्तुत क्लीनचिट रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए मामले में निष्पक्ष और गहन अग्रिम विवेचना करने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि इस प्रकरण में उपलब्ध साक्ष्यों को नजरअंदाज किया गया है, जो विवेचक की जांच पर संदेह पैदा करता है।

वादी की शिकायत और मामला दर्ज होने की पृष्ठभूमि
कूरेभार थाना क्षेत्र के निदूरा गांव निवासी वादी उदय कुमार कोविद ने अदालत में अर्जी देकर बताया कि वर्ष 2015 में लखनऊ में प्लॉट खरीदने के लिए उनसे संपर्क किया गया था। वादी के अनुसार, उस समय के जिला पंचायत राज अधिकारी सर्वेश कुमार पांडेय ने उनका परिचय खालसा रियल एस्टेट कंपनी से जुड़े लोगों से कराया था।
वादी ने बताया कि कंपनी के निदेशक जोगेन्दर सिंह, सह-निदेशक सुरिन्दर कौर और सेल्स मैनेजर रामनायक पांडेय ने उन्हें “अमृत कृपा” नामक साइट का नक्शा दिखाकर निवेश का प्रस्ताव दिया था। आरोपियों ने लखनऊ के विनीत नगर विस्तार में प्लॉट उपलब्ध कराने की बात कही।
इन लोगों ने वादी समेत दर्जनभर निवेशकों को आकर्षक ऑफर दिखाए और प्लॉट दिलाने के नाम पर लाखों रुपये की रकम वसूल ली। लेकिन वादी का कहना है कि पैसे लेने के बाद न तो प्लॉट दिया गया और न ही रकम वापस की गई। कई महीनों तक अधिकारियों से शिकायत की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद वादी न्यायालय पहुंचे। 17 सितंबर 2023 को अदालत के आदेश पर कोतवाली नगर में मुकदमा दर्ज किया गया।

पुलिस की विवेचना और विवाद
मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने लंबी अवधि तक जांच की। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने विवेचना पूरी करने के बाद दो मुख्य आरोपियों -जोगेन्दर सिंह और सुरिन्दर कौर -को क्लीनचिट दे दी। जबकि तृतीय आरोपी, कंपनी के सेल्स मैनेजर रामनायक पांडेय के खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत कर दिया। वादी पक्ष ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह पक्षपातपूर्ण बताया और अदालत में प्रोटेस्ट अर्जी दायर की। वादी पक्ष के अधिवक्ता का कहना था कि आरोपियों की भूमिका स्पष्ट है और उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। बावजूद इसके पुलिस ने दो आरोपियों को पूरी तरह बचा लिया।
अदालत ने माना विवेचक की कार्यशैली संदिग्ध
सीजेएम नवनीत सिंह ने प्रोटेस्ट अर्जी पर सुनवाई के बाद वादी पक्ष द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों का गहन परीक्षण किया। अदालत ने पाया कि:
- आरोपियों से संबंधित साक्ष्य को विवेचक ने अनदेखा किया,
- जांच में गंभीर कमियां पाई गईं,
- मुख्य आरोपियों को बिना उचित कारण क्लीनचिट दी गई,
- और विवेचना में निष्पक्षता का अभाव स्पष्ट नजर आया।
इन्हीं कारणों से अदालत ने विवेचक की रिपोर्ट को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यह विवेचना न्यायोचित और विश्वनीय नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की कि विवेचक की कार्यशैली संदिग्ध प्रतीत होती है।

अग्रिम जांच का आदेश
अदालत ने मामले से जुड़े सभी अभिलेख वापस करते हुए नगर कोतवाल को निष्पक्ष और गहन अग्रिम विवेचना करने का आदेश दिया है। साथ ही, अदालत ने क्षेत्राधिकारी नगर को भी इस जांच की निगरानी करने का निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि 5 दिसंबर तक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई निर्धारित होगी।
निवेशकों की चिंता और बढ़ती ठगी के मामले
इस घोटाले में दर्जनों निवेशक प्रभावित हुए हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई प्लॉट खरीदने में लगा दी थी। वादी के अनुसार, कई लोग अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और आरोपियों द्वारा पैसा न लौटाए जाने के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। रियल एस्टेट सेक्टर में इस प्रकार की ठगी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई बार लोग लालच में आकर जमीन देखे बिना ही निवेश कर देते हैं और बाद में धोखाधड़ी का शिकार बनते हैं।

सीजेएम की सख्ती ने निवेशकों में उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। उन्हें उम्मीद है कि अग्रिम विवेचना में सभी तथ्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन होगा और जिम्मेदार लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।