| संवाददाता, शाहबाज़ खां |
आज सुबह रामपुर शहर में ग़म और अफ़सोस की लहर दौड़ गई जब अमेरिका के डेलास शहर से यह दुखद खबर आई कि शहर मुफ्ती हज़रत मौलाना महबूब अली साहब क़ादरी वजीही का निधन हो गया है। इस्लामी शिक्षण, धार्मिक नेतृत्व और समाज सेवा में छह दशकों से अधिक का योगदान देने वाले इस अजीम शख्सियत के जाने से रामपुर की रोहानी और इल्मी दुनिया को गहरा धक्का पहुंचा है।
“इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” — हम सब अल्लाह की तरफ से आए हैं और उसी की तरफ लौट कर जाना है।
📖 जन्म और प्रारंभिक शिक्षा
मुफ्ती महबूब अली साहब क़ादरी वजीही का जन्म जून 1930 में रामपुर के मोहल्ला अंगूरी बाग में हुआ था। उनके वालिद हाफ़िज़ अमजद अली साहब एक धर्मनिष्ठ और शिक्षाविद व्यक्ति थे।
- मुफ़्ती साहब ने प्रारंभिक शिक्षा मदरसा अनवारुल उलूम में प्राप्त की।
- यहीं पर उन्होंने कुरान-ए-करीम को हिफ़्ज़ किया और इस्लामी तालीम की बुनियाद रखी।
- 1948 से 1954 तक उन्होंने खतीब-ए-आजम मौलाना शाह वजीहुद्दीन अहमद खान कादरी मुजद्दी से अरबी, हदीस और फ़िक़्ह की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
👨🏫 शिक्षण और धार्मिक सेवा की शुरुआत
- 1954 में मुफ़्ती साहब ने मदरसा जामे उल उलूम फुरकानिया में अध्यापन कार्य शुरू किया।
- उनकी काबिलियत और विद्वता को देखते हुए कुछ वर्षों में ही वे प्रिंसिपल के पद तक पहुंच गए।
- 1998 में वे मदरसा बोर्ड की सेवा से सेवानिवृत्त हुए लेकिन इस के बाद भी शिक्षण और दीन की खिदमत जारी रखी।
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🕌 मुफ्ती-ए-शहर की ज़िम्मेदारी
- 1959 में खतीब-ए-आजम ने उन्हें जामा मस्जिद का इमाम नियुक्त किया।
- 1960 में उन्हें आधिकारिक रूप से मुफ़्ती-ए-शहर रामपुर और मुफ़्ती फुरकानिया का दर्जा मिला।
- उन्होंने 65 वर्षों तक बिना रुके फतवा, शिक्षा और धार्मिक नेतृत्व की सेवा की।
📚 इल्म-ए-हदीस में योगदान
News Time Nation Rampur को प्राप्त जानकारी के अनुसार मुफ़्ती साहब ने इस्लामी शिक्षाओं को आम करने के लिए कई किताबें लिखीं।
- उनकी सबसे मशहूर किताब “मिश्कात शरीफ की उर्दू व्याख्या” है, जिसे आठ खंडों में मदरसा फुरकानिया से प्रकाशित किया गया था।
- इस किताब ने उर्दू भाषी विद्यार्थियों को हदीस की गहराई और सही मफ़हूम को समझने में बड़ी मदद की।
🌍 शिष्यों की बड़ी संख्या
- मुफ़्ती साहब के सैकड़ों शिष्य भारत, बांग्लादेश, नेपाल और खाड़ी देशों में इस्लामी शिक्षण और नेतृत्व कर रहे हैं।
- उन्होंने हमेशा अहले सुन्नत वल जमात के मसलक को बढ़ावा दिया और समाज को मझधार रास्ते (राहे एतेदाल) पर चलने की शिक्षा दी।
News Time Nation Rampur के संवाददाता से बातचीत में एक पुराने शिष्य ने कहा:
“मुफ़्ती साहब हमारे लिए सिर्फ एक आलिम नहीं, बल्कि ज़िंदगी के रहबर थे।”
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🛕 सामाजिक जिम्मेदारियाँ
- वे मदरसा जामे उल उलूम फुरकानिया और खानकाहे अहमदिया कादरिया की प्रबंध समिति के आजीवन अध्यक्ष और मुतवल्ली भी रहे।
- जामा मस्जिद की खिताबत (शुक्रवार के खुतबे और नमाज़ की इमामत) को उन्होंने अंतिम समय तक निभाया।
✈️ अमेरिका यात्रा और ब्रेन स्ट्रोक
- 5 अगस्त 2025 को वे रामपुर से अमेरिका रवाना हुए। यह यात्रा अपने पोते हाफिज़ व कारी सअबीह अंजुम की शादी में शिरकत के लिए थी।
- वहां पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें दिमागी दौरा (Brain Stroke) पड़ा।
- तुरंत सर्जरी की गई, लेकिन वे होश में नहीं आए और कुछ दिन बाद इंतेकाल हो गया।
⚰️ अंतिम संस्कार की तैयारियाँ
- जुमा की सुबह तक उनकी मैयत रामपुर पहुंचने की संभावना है।
- नमाज़-ए-जनाज़ा और तदफीन (दफनाने की प्रक्रिया) का कार्यक्रम उसी दिन तय किया जाएगा।
👨👩👧👦 परिवार में शोक का माहौल
- वे अपने पीछे पत्नी, तीन बेटे और तीन बेटियाँ छोड़ गए हैं:
- श्री मसूद अली साहब
- डॉ. ज़फ़र अली अंजुम उर्फ सऊद साहब
- मुंशी फैज़ अली इरफान साहब
📿 कुरान ख्वानी और कुल शरीफ
- बुधवार को पूरे शहर में कुरान ख्वानी का आयोजन किया गया।
- दोपहर 12 बजे मदरसा फुरकानिया में सैकड़ों छात्रों, शिक्षकों और शहरवासियों ने ‘कुल शरीफ’ में हिस्सा लिया।
- शहर इमाम मौलवी मोहम्मद नासिर खान साहब ने मरहूम की मगफिरत की दुआ कराई।
📝 News Time Nation Rampur की श्रद्धांजलि
News Time Nation Rampur की टीम मरहूम मुफ़्ती साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करती है और मानती है कि उनका जीवन आज के उलेमा और शिक्षकों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
“इल्म, इख़लाक़ और इख़लास का ऐसा संगम बिरले ही मिलता है, जो मुफ़्ती साहब की शख्सियत में था।”
🕌 उनका जाना क्यों है बड़ा नुकसान?
- शिक्षा, समाज और आध्यात्मिक नेतृत्व — तीनों क्षेत्रों में वे सशक्त स्तंभ थे।
- रामपुर का धार्मिक समाज आज एक शून्य का अनुभव कर रहा है।
- उनका लिखा साहित्य आने वाली पीढ़ियों को दीन की सही समझ देगा।
📰 निष्कर्ष
News Time Nation Rampur के इस विशेष समाचार के माध्यम से हम सिर्फ एक शख्सियत को श्रद्धांजलि नहीं दे रहे, बल्कि एक ऐसे अध्याय को सलाम कर रहे हैं जिसने न केवल रामपुर, बल्कि समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में इल्म, तहज़ीब और रहनुमाई की रौशनी फैलाई।