संवाददाता , योगेश यादव
उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले में पुलिस की कार्यशैली पर फिर से सवाल उभरकर सामने आया है। कलेक्ट्रेट में कुड़वार थानाध्यक्ष के खिलाफ प्रदर्शन होने के अगले ही दिन—शिवगढ़ थानाध्यक्ष के खिलाफ भी ग्रामीणों में भारी नाराजगी सामने आई। ग्रामीणों ने शिवगढ़ थानाध्यक्ष ज्ञानेश द्विवेदी के खिलाफ “मुर्दाबाद” के नारे लगाए और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से न्याय की गुहार लगाई।
मामला क्या है?
शिवगढ़ थाना क्षेत्र की एक ग्राम पंचायत में, प्रधान सूरज साहू और स्थानीय ग्रामीणों के बीच मारपीट का मामला सामने आया। आरोप है कि प्रधान सूरज साहू अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर पुलिस में पक्षपात करवा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों में गुस्सा उभर आया।
ग्रामीणों का कहना है कि थाने में पुलिस मामले की निष्पक्ष जांच करने से इन्कार कर रही है। दूसरी ओर, प्रधान सूरज साहू का कहना है कि यह सब प्रधानी चुनाव के मद्देनज़र गांव में माहौल बिगाड़ने की साजिश हो सकती है।
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थानाध्यक्ष की प्रतिक्रिया
शिवगढ़ के थानाध्यक्ष ज्ञानेश द्विवेदी ने कहा कि दोनों पक्षों द्वारा प्राथमिकी (प्रार्थना पत्र) प्रस्तुत किए गए थे। इस आधार पर क्रॉस मुकदमा दर्ज किया गया है—यानी दोनों पक्षों पर एफआईआर हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आगे की कार्यवाई साक्ष्य और कानूनी प्रक्रिया के आधार पर की जाएगी।
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स्थानीय प्रतिरोध और नाराजगी का स्वरूप
ग्रामीण संगठित होकर थाने के बाहर पहुंचे और शक्तिशाली नारों के माध्यम से न्याय की मांग की। ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस की निष्पक्षता पर उनका भरोसा टूट चुका है, और वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की अपेक्षा करते हैं।
यह प्रदर्शन कलेक्ट्रेट परिसर में हुए प्रदर्शन जैसा उग्र नहीं था, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता और दबाव स्पष्ट रूप से दिखता था।
विश्लेषण: क्या है प्रमुख बातें?
मुद्दा | विवरण |
---|---|
पक्षपात का आरोप | प्रधान के राजनीतिक दबाव से पुलिस निष्पक्ष जांच से विमुख |
क्रॉस एफआईआर | दोनों पक्षों पर केस—साक्ष्यों के आधार पर कार्यवाई की उम्मीद |
ग्रामीण नाराजगी | न्याय न मिलने पर मुख्यमंत्र से हस्तक्षेप की गुहार |
स्थानीय प्रशासन की भूमिका | फिलहाल केवल पुलिस और ग्रामीणों के बीच तनाव; आगे प्रशासनिक कदम अपेक्षित |
स्लेटेलाइट दृष्टिकोण: यह घटना व्यापक तौर पर क्या दर्शाती है?
- पुलिस की निष्पक्षता पर विश्वास की जाँच
ग्रामीणों द्वारा थानाध्यक्ष के खिलाफ प्रदर्शन यह दर्शाता है कि जब संस्था (पुलिस) सत्ता संरचनाओं से प्रभावित हो जाती है, तो समाज में न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता गिर जाती है। - राजनीतिक हस्तक्षेप का असर
स्थानीय चुनावी समीकरण कोई व्यक्ति को संवेदनशील स्थिति में डालते हैं, जिससे पुलिस को दबाव का सामना करना पड़ता है। - साक्ष्य के आधार पर कार्यवाई का महत्त्व
थानाध्यक्ष द्वारा क्रॉस एफआईआर की बात उठाने से स्पष्ट होता है कि पुलिस अब मामले को कानूनी प्रक्रिया में ले जाने का प्रयास कर रही है—लेकिन क्या यह सिर्फ बयानबाजी है? - प्रशासन और मुख्यमंत्री स्तर पर हस्तक्षेप की गुंजाइश
मुख्यमंत्री को लिखे गए आवेदन से यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण उच्च स्तर की न्यायिक या प्रशासनिक हस्तक्षेप की आशा कर रहे हैं।
निष्कर्ष
यह मामला न केवल स्थानीय विवाद है, बल्कि पुलिस विभाग में निष्पक्षता, राजनीतिक प्रभाव और न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता से जुड़े बड़े सवाल उठाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप की संभावना से यह स्पष्ट है कि थोड़ा ध्यान भरोसे को बहाल कर सकता है।
जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता है, इसके परिणाम पुलिस विभाग की प्रतिष्ठा, ग्रामीणों का विश्वास, और प्रशासन की जवाबदेही पर असर डालेंगे।