सुल्तानपुर संवाददाता :- अंकुश यादव
सुल्तानपुर / लखनऊ। पूर्व विधायक स्वर्गीय इंद्रभद्र सिंह की मूर्ति को लेकर वर्षों से चले आ रहे विवाद ने हाईकोर्ट का रुख मोड़ दिया है। इस मामले में सुल्तानपुर की हाईकोर्ट की डबल बेंच ने नगर पालिका, डीएम और अन्य संबंधित पक्षकारों को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला तब और गंभीर हो गया जब बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री विनोद सिंह ने मूर्ति हटाने की मांग उठाई। अब यह विवाद जनहित याचिका के रूप में हाईकोर्ट में लंबित है और अदालत ने इसे ताजा केस की तरह सूचीबद्ध किया है।

हाईकोर्ट की डबल बेंच, जिसमें जस्टिस राजन राय और जस्टिस राजीव भारती शामिल हैं, ने मामले की सुनवाई आज की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नगर पालिका और डीएम को इस मामले में पूर्ण विवरण और हलफनामा दाखिल करना होगा। हाईकोर्ट ने नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि मूर्तियां उनके द्वारा स्थापित कराई गई हैं या नहीं।
पिछली सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया था। इसके साथ ही पीडब्ल्यूडी के अफसरों और डीएम कुमार हर्ष की तरफ से भी जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया था। हालांकि, अन्य विपक्षियों की तरफ से हलफनामा नहीं आया था। डीएम के हलफनामे में केवल यह बताया गया कि मूर्तियां नगरपालिका के जरिए स्थापित कराई गई हैं, लेकिन सरकारी भूमि में मूर्तियों के अवैध तरीके से स्थापित होने या उन्हें हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर कोई विवरण नहीं दिया गया। अदालत ने डीएम को पूरक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर मूर्तियां नगरपालिका के जरिए स्थापित नहीं कराई गई हैं, तो इसे अपने हलफनामे में स्पष्ट किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सरकारी भूमि में बिना अनुमति स्थापित की गई मूर्तियों के लिए क्या कार्यवाई की जानी चाहिए, इसका पूरा विवरण देना अनिवार्य होगा।
मौजूदा मामला धनपतगंज थाना क्षेत्र, हलियापुर- कूरेभार मार्ग के किनारे और जिला न्यायालय के निकट स्थित चौराहे पर स्थापित पूर्व विधायक स्वर्गीय इंद्रभद्र की मूर्ति से जुड़ा है। बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री विनोद सिंह ने इसे हटाने की मांग की थी, जिसके बाद यह विवाद उच्च न्यायालय तक पहुंचा। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका पर सुनवाई तेज कर दी है।
सुनवाई में अदालत ने कहा कि हलफनामों में यह स्पष्ट किया जाए कि मूर्तियां सरकारी भूमि पर कैसे स्थापित हुई, क्या उन्हें हटाने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है और अगर हां, तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। इसके साथ ही अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसी किसी भी मूर्ति या निर्माण को स्थापित करने से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हाईकोर्ट ने नगर पालिका और डीएम को नोटिस जारी कर उन्हें जवाब-तलब किया है। अदालत ने कहा कि सभी पक्षकारों को अपने हलफनामों में पूरी जानकारी प्रस्तुत करनी होगी। यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि कोई पक्षकार इस मामले में जिम्मेदारी से चूकता है, तो उसके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाई की जा सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल एक मूर्ति विवाद नहीं है, बल्कि यह सरकारी भूमि, नगर नियोजन और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। हाईकोर्ट का हस्तक्षेप इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इससे भविष्य में ऐसे विवादों के समाधान और निवारण के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया स्थापित होगी।
सुल्तानपुर में स्थानीय नागरिक भी इस मामले को लेकर उत्सुक हैं। उनका कहना है कि सरकारी भूमि पर अवैध रूप से निर्माण होना न केवल नियमों के खिलाफ है, बल्कि इससे शहर की सड़कों और सार्वजनिक स्थानों का उपयोग प्रभावित होता है। अदालत द्वारा हलफनामों और स्पष्ट निर्देशों की मांग ने इस विवाद को और सार्वजनिक ध्यान का केंद्र बना दिया है।
अगली सुनवाई में डीएम कुमार हर्ष और नगरपालिका के अधिकारियों द्वारा पूरक हलफनामों के माध्यम से अदालत को पूरी जानकारी देने की उम्मीद है। यह देखने वाली बात होगी कि हाईकोर्ट इस विवाद में क्या निर्णय लेता है और मूर्तियों के हटाने या बनाए रखने की प्रक्रिया कैसे तय की जाती है।