उत्तर प्रदेश में भाजपा की ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद राजनीतिक हलचल और तेज हो गई है. लम्बे समय से इंतजार किया जा रहा था कि सीएम योगी किस सीट से भाग्य आजमाएंगे. अब साफ हो गया है कि वह अपने गोरखपुर से लोगों के बीच उतरेंगे. पिछले कई दिनों से खबर आ रही थी कि वे राम जन्मभूमि अयोध्या से चुनावी मैदान में उतरेंगे, लेकिन भाजपा की ओर से जारी लिस्ट में जब उनका नाम गोरखपुर से आया तो यह सभी के लिए चौंकाने वाला था. अन्य पार्टियों के साथ लोगों के मन में भी यही सवाल उठ रहा है कि आखिर उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय क्यों लिया? साथ ही यह भी सवाल है कि गोरखपुर सीट से विधायक वर्तमान विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल का अब क्या होगा? आइए इस पूरे राजनीतिक गणित को समझने की कोशिश करते हैं.
माना जा रहा है कि एक बार फिर भाजपा की लहर आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेगी. साथ ही योगी को एक बार फिर सीएम की कुर्सी मिलेगी. ऐसे में उनके लिए विधानसभा सीट का चुनाव करना आसान नहीं था. उनके गोरखपुर सीट से उतरने के पीछे कई राजनीतिक समीकरण हैं. इसके लिए 2002 के इतिहास पर नजर डालनी होगी. दरअसल, गोरखपुर सदर सीट पर गोरक्षपीठ मठ का हमेशा से प्रभाव रहा है. ऐसे में यहां पर जो भी प्रत्याशी उतरता है उसके पीछे मठ की सहमति अवश्य होती है.
2002 में विरोधी के तौर पर उतरे थे योगी
2002 में यहां से भाजपा के टिकट पर वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ला मैदान में उतरे थे. तब योगी आदित्यनाथ और शुक्ला के आपसी रिश्ते कुछ बेहतर नहीं थे. ऐसे में योगी ने राजनीतिक गणित बैठाते हुए भारतीय हिंदू महासभा के उम्मीदवार के तौर पर राधामोहन दास अग्रवाल को मैदार में उतार दिया. इसे योगी आदित्यनाथ का प्रभाव ही कहा जाएगा कि ना सिर्फ इस सीट से अग्रवाल विजयी हुए, बल्कि शुक्ला को तीसरे स्थान से संतुष्ट होना पड़ा. इसके बाद से अग्रवाल का प्रभाव ऐसा रहा कि वे लगातार इस सीट से चार बार विधायक की कुर्सी पर बैठे.