लखीमपुर खीरी में मौत के शिकंजे में गांव: बाघ के आतंक से किसान डरे

लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में इन दिनों आतंक का पर्याय बने एक खूंखार बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीमें दिन-रात एक कर रही हैं। बाघ के हमलों से इलाके के ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि गांव के बच्चे स्कूल जाने से भी कतरा रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की नींद उड़ा दी है। तीन दिन पहले थाना हैदराबाद के इमलियापुर गांव में 45 वर्षीय अमरीश की बाघ के हमले में मौत हो गई थी, जिससे ग्रामीणों में भय व्याप्त है। वन विभाग ने बाघ की तलाश में ड्रोन और ट्रैक्टर की मदद से खेतों और पगडंडियों की गहन तलाशी शुरू कर दी है।

बाघ के हमले की पृष्ठभूमि

बीते 1 से 2 महीनों में इस बाघ ने तीन लोगों को मौत के घाट उतारा है। कई अन्य लोग भी बाघ के हमले में घायल हो चुके हैं। अमरीश की मौत ने इस संकट को और गहरा दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि बाघ की दहशत के कारण वे अपने खेतों में जाने से भी डर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में बाघ के हमले से अब तक कई परिवार तबाह हो चुके हैं, और प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई न होने के कारण उनकी चिंता बढ़ती जा रही है।

वन विभाग की कार्रवाई

बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग ने साउथ खीरी वन प्रभाग के इमलिया क्षेत्र में एक पिंजरा लगाया था। पिंजरा लगाया गया ताकि बाघ को सुरक्षित तरीके से पकड़ा जा सके और उसे वन में छोड़ दिया जाए। हालांकि, बाघ की तलाश में जुटी टीम को एक बड़ा हादसा झेलना पड़ा जब बाघ के लिए लगाए गए पिंजरे में एक वनकर्मी ही फंस गया। मीडियाकर्मी के कहने पर अंदर ट्रायल देने गया कर्मी अचानक पिंजरे के बंद होते ही उसमें कैद हो गया। बाद में काफी मशक्कत के बाद उसे बाहर निकाला गया।

बाघ की खोज: चुनौतियाँ और रणनीतियाँ

ड्रोन और ट्रैक्टर की मदद से खेतों की गहन तलाशी के बावजूद, अब तक बाघ का कोई ठोस सुराग नहीं मिल पाया है। वन विभाग की टीमें इलाके की हर पगडंडी और संभावित ठिकानों की छानबीन कर रही हैं। बाघ की मूवमेंट को ट्रैक करने के लिए कैमरा ट्रैप भी लगाए गए हैं। इन सब प्रयासों के बावजूद, बाघ अब तक पकड़ में नहीं आ सका है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बाघ की चालाकी और इलाके की जटिलता के कारण उसे पकड़ना मुश्किल हो रहा है।

ग्रामीणों में दहशत

इमलियापुर गांव के लोग बाघ के खौफ में जी रहे हैं। बाघ के आतंक के कारण ग्रामीण अपने घरों से बाहर निकलने में भी डर रहे हैं। खेतों में काम करने वाले किसानों का कहना है कि बाघ की वजह से उनकी फसलों की कटाई प्रभावित हो रही है। बच्चों के स्कूल जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक बाघ को पकड़ा नहीं जाता, तब तक उनका जीना मुश्किल है।

प्रशासनिक उदासीनता

ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया, जिसके कारण आज यह बाघ पूरे इलाके में दहशत फैला रहा है। वे मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द बाघ को पकड़कर जंगल में छोड़ा जाए ताकि गांव में शांति लौट सके। वन विभाग के अधिकारी हालांकि स्थिति को नियंत्रण में लेने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बाघ की चपलता और उसकी छिपने की क्षमता उनके प्रयासों को कमजोर कर रही है।

बाघ पकड़ने के प्रयासों में आ रही चुनौतियां

वन विभाग को बाघ पकड़ने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण इलाकों में बाघ का मूवमेंट अनिश्चित है, और कई बार वह खेतों के भीतर या झाड़ियों में छिप जाता है। इसके अलावा, इलाके की भौगोलिक जटिलताओं ने भी बाघ को पकड़ने के प्रयासों को धीमा कर दिया है। बाघ की तेज़ चालाकी और शिकार करने की आदत ने वन विभाग के लिए इस कार्य को और मुश्किल बना दिया है।

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लखीमपुर खीरी में बाघ के आतंक से ग्रामीणों की जिंदगी दुश्वार हो गई है। बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीमें हर संभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। ग्रामीणों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए। यदि बाघ को समय पर नहीं पकड़ा गया, तो यह समस्या और विकराल हो सकती है, जिससे ग्रामीणों का जीना दूभर हो जाएगा। वन विभाग को अपने प्रयासों को और तेज़ करना होगा और प्रशासन को भी इस मुद्दे पर अधिक सक्रियता दिखानी होगी, ताकि गांव के लोग फिर से अपने सामान्य जीवन की ओर लौट सकें।

Deepak

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