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खतौली: पश्चिमी यूपी की वह सीट जो रहा टिकैत परिवार का गढ़ और फिर राकेश को दी जोरदार पटखनी

शहर मुख्यालय के अलावा मुजफ्फरनगर के दूसरे सबसे बड़े नगर खतौली की विधानसभा सीट किसी समय वेस्ट यूपी की राजनीति का बड़ा केंद्र रहती थी। इसी विधानसभा से पता चलता था कि वेस्ट यूपी में चुनाव में किसानों का रुख क्या है। 2007 तक भाकियू का मुख्यालय सिसौली इसी विधानसभा क्षेत्र का भाग था और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसान राजनीति में उदय होने के बाद कई चुनावों में खतौली से कौन विधानसभा में जाएगा, इसको सिसौली तय करती रही। 2007 में जब भाकियू ने अराजनैतिक स्वरूप त्याग किया और राकेश टिकैत चुनाव में उतरे तो लोगों ने इस मिथक को तोड़ दिया।

 

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जिले की खतौली विधानसभा सीट वैसे तो 1967 के चुनाव के दौरान अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर लगातार पांच चुनावों तक किसान नेता स्व. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के आशीर्वाद से ही विधायक बनता रहा है।

भाकियू के दबदबे का मिथक टूटा
रामलहर में सुधीर बालियान ने लगातार दो बार 1991 व 1993 में इस सीट पर जीत दर्ज की। जबकि 1993 में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत और भाकियू उनके विरोध में रही थी। 1996 व 2002 के चुनावों में राजपाल सिंह बालियान सिसौली से मिले समर्थन के बल पर विजयी रहे। 2007 में इस सीट पर भाकियू के दबदबे का मिथक टूट गया। भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत खुद चुनाव में उतर गए लेकिन वह चौथे स्थान पर रहे और उनके धुर विरोधी रहे योगराज सिंह ने जीत दर्ज कर बसपा सरकार में राज्यमंत्री भी बने।

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पहले जानसठ का हिस्सा थी
खतौली आजादी के बाद 1952 में हुए चुनावों में जानसठ सीट का ही हिस्सा हुआ करती थी। हालांकि 1967 में खतौली विधानसभा का गठन होने के बाद यहां पर सबसे पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर सरदार सिंह विधायक बने थे। इसके बाद इस सीट पर जिले की राजनीति के दिग्गज रहे वीरेंद्र वर्मा ने 1969 में बीकेडी के टिकट पर जीत दर्ज की। गठन के बाद से ही इस सीट पर जाट बिरादरी के प्रत्याशी का दबदबा बन गया था।

नया परिसीमन
जानसठ कस्बे से लेकर खतौली नगर के अलावा रतनपुरी तक के कुल 144 गांव। नए परिसीमन के बाद किसी बिरादरी का कोई वर्चस्व इस विधानसभा पर नही रह गया है।

मुख्य समस्या
खतौली कस्बे को रिम और धुरे के उद्योग के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि यह अब प्रतिस्पर्धा के युग में पिछड़ रहा है। इसके अलावा गांवों में आवारा पशुओं के लिए गौशाला, कई गांवों में श्मशान घाट, क्षेत्र में स्टेडियम यहां का प्रमुख मुद्दा है। खतौली शुगर मिल भारत के सबसे बड़ा पेराई क्षमता का चीनी मिल है। गन्ना सीजन में परेशानी का सामना भी करना पड़ता है।

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