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प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी, कैसे दशकों तक सत्ता में बनी रह सकती है भाजपा

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार और हालिया उपचुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन के बाद 2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के चुनाव में उसकी राह कठिन हो सकती है। लेकिन हाल ही में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएम मोदी ने भरोसा जताया है कि पार्टी की स्थिति मजबूत बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि हमारे पास कार्यकर्ताओं की फौज है जबकि अन्य पार्टियों सिर्फ एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती हैं। हालांकि मौजूदा वक्त में बात यह भी है कि बीजेपी भी नरेंद्र मोदी के आस-पास रहती है।

भाजपा बैठक

हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा था कि बीजेपी भारतीय राजनीति के केंद्र में बनी रहेगी। कई पॉलिटिकल एनालिस्ट्स ने प्रशांत के इस बात से सहमति जताई थी। एक्सपर्ट्स का मानना है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भारतीय राजनीति के मौलिक नियमों को बदल दिया है। बीजेपी कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो चुनाव के वक्त सक्रिय होती है, यह पूर्णकालिक चुनाव मशीन है जो हर वक्त विरोधियों को कुचलने को तैयार रहती है। यह संभव है कि बीजेपी आने वाले कुछ विधानसभा चुनावों में हार जाए लेकिन पार्टी का मुख्य फोकस उत्तर प्रदेश पर है। बीजेपी लखनऊ जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। बीजेपी किसी भी हाल में सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश को जीतना चाहती है।

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राहुल गांधी से कैसे भाजपा को मिल रहा है फायदा

बीजेपी राहुल गांधी को अपने तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करती है। कांग्रेस के हर कदम को राहुल गांधी की नाकामी से जोड़कर भुनाने का काम करती है। पंजाब ताजा उदाहरण है कि गांधी परिवार ने अमरिंदर सिंह जैसे पुराने योद्धा को कैसे अपमानित किया। कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि मौजूदा वक्त में गांधी परिवार पार्टी का नेतृत्व करने में अयोग्य है। लखमीपुर खीरी में किसानों के साथ जो भी हुआ, उसके बाद प्रियंका गांधी कई दिनों तक मीडिया में हावी रहीं। लेकिन क्या ऐसे कांग्रेस सत्ता में आ सकती है या मजबूत विपक्ष बन सकती है? यह अब भी एक बड़ा सवाल है।

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कांग्रेस पार्टी के अंदर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी कई महीनों से पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं चुन सकी है। हालांकि गांधी परिवार ने माना है कि पूर्णकालिक अध्यक्ष का चयन जरूरी है लेकिन पार्टी की बागडोर को लेकर खींचतान जारी है। सोनिया गांधी की तबीयत उन्हें सक्रिय भूमिका निभाने की इजाजत नहीं देता है। राहुल भले मोदी सरकार की बातों की धज्जियां उड़ा रहें हो लेकिन अपनी पार्टी के संविधान का सम्मान करने में लापरवाह रहे हैं। 1998 के बाद से पार्टी में आंतरिक चुनाव नहीं हुए हैं। राहुल पर आरोप लगते रहे हैं कि वह बुजुर्गों से परामर्श करने की जहमत नहीं उठाते।

विपक्षी दलों को भी नहीं दिखती राहुल गांधी से उम्मीद

कांग्रेस के साथ ही विपक्ष भी हताश दिख रहा है। विपक्षी दल भी 2024 चुनावों में नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी को भरोसेमंद विकल्प के तौर भी नहीं देख रहे हैं। ममता बनर्जी ने गोवा, त्रिपुरा और मेघालय में असंतुष्ट कांग्रेसियों को लुभाकर तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करना शुरू कर दिया। शरद पवार भी इसे राह पर जाते दिख रहे हैं। निकट भविष्य में राहुल गांधी पीएम पद के दावेदार से हटते हुए नहीं दिख रहे हैं। ऐसा करके वह शायद खुद के साथ ही पार्टी का भी नुकसान कर रहे हैं।

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