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दिल्ली में सुस्त वोटिंग के क्या मायने, केजरीवाल को लगेगा झटका या BJP के लिए निराशा?

राजेंद्र नगर विधानसभा सीट पर गुरुवार को हुए उपचुनाव में पिछली बार से कम मत पड़े। एक लाख 64 हजार 698 मतदाताओं में से 43.75 फीसदी ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, जो बीते विधानसभा चुनाव के मुकाबले करीब साढ़े 14 फीसदी कम है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 58.27 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था। 26 जून को मतों की गिनती होगी। आप की ओर से विधायक राघव चड्ढा को पंजाब से राज्यसभा भेजे जाने के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव कराए गए।

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गुरुवार को चुनाव लड़ रहे 14 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई। उपचुनाव को लेकर गुरुवार को 21 मतदान केंद्र बनाए गए थे। 190 बूथों पर शांतिपूर्ण तरीके से मतदान प्रक्रिया संपन्न हुई। मतदान प्रक्रिया शुरू होने के बाद स्थानीय मतदाता और भाजपा से सांसद गौतम गंभीर और आप से राज्य सभा सदस्य राघव चड्ढा ने भी वोट डाले।

कम वोटिंग के क्या हैं मायने?
वैसे तो आम चुनावों में सुस्त वोटिंग सत्ताधारी दल के पक्ष में माना जाता है और अधिक वोटिंग का अर्थ जनता में ‘बदलाव के मूड’ समझा जाता है। लेकिन राजेंद्र नगर उपचुनाव से दिल्ली की सत्ता पर कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है। इस चुनाव से सिर्फ यह तय होना है कि बचे हुए कार्यकाल के लिए राजेंद्र नगर का विधायक कौन होगा। माना जा रहा है कि सुस्त वोटिंग के पीछे वजह भी वही है। यह किसके लिए फायदेमंद होगा और किसके लिए नुकसानदायक यह तो 26 जून को काउंटिग के बाद पता चलेगा, फिलहाल राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आमतौर पर उपचुनाव के नतीजे सत्ताधारी दल के पक्ष में ही जाते हैं। असल में वोटर्स के मन में यह धारणा होती है कि जिस पार्टी की सरकार है उसी का विधायक भी होने से काम आसानी से होगा। हालांकि, गंदा पानी और गली-मोहल्लों में शराब की दुकानें खोलने जैसे मुद्दे पर जनता आप सरकार से नाराज नजर आई है।

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