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अभिनेत्री सीमा पाहवा बोलीं की रंगमंच तो रंगमंच ही होता है, उसकी अपनी एक अलग दुनिया दुनिया होती है

Hum Logs Badki Seema Pahwa Is Corona Positive Other Family Members Are Safe ANN | 'हम लोग' की बड़की सीमा पाहवा भी कोरोना की चपेट में, परिवार के अन्य सदस्य हैं सुरक्षित

 

अब मेरी कोशिश यही रहती है कि हर बार कोई अलग चरित्र निभा पाऊं। ऐसा हमेशा तो नहीं होता है लेकिन हां अगर दस फिल्में की हैं तो उनमें से दो जरूर ऐसी होता हैं जो सच में हमारे दिल से जुड़ी फिल्में होती हैं।अभिनेत्री सीमा पाहवा का रंगमंच की दुनिया से गहरा जुड़ाव है। 22 जनवरी से प्रदर्शित होने वाले जी थिएटर के टेलीप्ले (टीवी पर नाटक मंचन की विधा) कोई बात चले में अभिनय व निर्देशन की दोहरी जिम्मेदारी उन्होंने संभाली है। फिल्म रामप्रसाद की तेरहवीं के बाद दूसरी फिल्म निर्देशित करने की भी उनकी योजना है।

 

हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में नाटकों का क्या योगदान देखती हैं?

हिंदी और उर्दू साहित्य के प्रचार प्रसार में नाटकों का बड़ा योगदान रहा है। हम नाटकों में जिन कहानियों का चयन करते हैं, वो ज्यादातर हमारे साहित्य से ही होती हैं। आज की पीढ़ी का विदेशी चीजों की तरफ आकर्षण तेजी से बढ़ा है। पता ही नहीं चलता कि हम भारतीय संस्कृति कहां छोड़ आए। थिएटर, जहां साहित्यिक कहानियों का मंचन होता है, वहां एक सीमित दर्शक वर्ग ही पहुंच पाता है। जो दर्शक वर्ग अभी घर पर ही है और उनका थिएटर से परिचय नहीं हुआ है, उनके लिए टेलीप्ले अच्छी शुरुआत है, जहां वह घर बैठे ही थिएटर से जुड़ सकते हैं। इससे साहित्य में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ सकती है।

नाटकों की दुनिया में टेलीप्ले को कितना क्रांतिकारी माध्यम मानती हैं?

रंगमंच तो रंगमंच ही होता है, उसकी अपनी दुनिया और अनुभव होता है। हां, टेलीप्ले के जरिए नाटकों को स्क्रीन पर लाना बहुत अलग प्रयोग है, लोग इसे कितना पसंद करेंगे, यह सवाल तो अभी बना हुआ है। बाकी हमारी कोशिश तो पूरी है कि इसके जरिए हम लोगों तक नाटक और अपने साहित्य को पहुंचा सकें।

इसके निर्देशन में सबसे चुनौतीपूर्ण क्या रहा?

किसी एक कलाकार का अभिनय के साथ कहानी पढ़ना मेरे और लोगों सभी के लिए एक नया अनुभव है। सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि पढ़ते समय कलाकार की नजर किताब पर होती है, ऐसे में अगर आप दर्शकों से आंख नहीं मिलाते तो उनसे जुड़ाव टूट जाता है। दर्शकों से जुड़ाव बनाए रखने के लिए हमने कलाकारों के हाथ में कहानी तो दी, लेकिन उन्हें वह अभिनय के साथ संतुलन बनाते हुए दर्शकों की आंखों में देखकर पढ़ना था।

बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म कब शुरू कर रही हैं?

निर्देशन बहुत तकनीकी चीज हैं। मैं तो रामप्रसाद की तेहरवीं के तुरंत बाद ही चाहती थी कि दूसरी कहानी लोगों तक पहुंचाऊं, लेकिन सिर्फ निर्देशक के चाहने से फिल्म नहीं बनती है। उसके लिए फाइनेंसर, प्रोड्यूसर लगते हैं। मैं प्रोड्यूसर्स को मनाने में लगी हुई हूं, अगर सहमति बनती है, तो बहुत शीघ्र बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म शुरू करूंगी।

क्या दूसरी फिल्म भी सामाजिक विषय से जुड़ी होगी?

मैं पारिवारिक चीजों को ज्यादा समझती हूं, मैंने उन्हें ज्यादा जिया है। मेरी कहानी में कहीं न कहीं परिवार और उनके बीच के रिश्तों की झलक तो रहेगी ही।

पेशेवर जिंदगी में इस स्थान पर पहुंचने के बाद काम के चयन को लेकर क्या प्राथमिकताएं होती हैं?

अब मेरी कोशिश यही रहती है कि हर बार कोई अलग चरित्र निभा पाऊं। ऐसा हमेशा तो नहीं होता है, लेकिन हां, अगर दस फिल्में की हैं, तो उनमें से दो जरूर ऐसी होता हैं, जो सच में हमारे दिल से जुड़ी फिल्में होती

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