Breaking NewsPolitics News

कुछ इस तरह बसपा के वोटबैंक को समेटने की जुगत में अखिलेश यादव

24 06 2019 maya and ti 19341165

क्या समाजवादियों ने बहुजनों की राजनीति शुरु कर दी है? हालात तो इसी बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं. पिछड़ों के साथ-साथ अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने दलित वोटबैंक (Dalit Votebank) पर भी डोरे डालने शुरु कर दिये हैं और वो भी बहुत आक्रामक तरीके से. पिछले कुछ महीने के घटनाक्रम तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं. अखिलेश यादव ये लक्ष्य दो तीरों से साध रहे हैं. पहला तो ये कि वे अपनी हर रैली में दलित समाज से जुड़े मुद्दे उठाकर अपने आप को इनका रहनूमा दिखा रहे हैं और दूसरा ये कि उन्होंने बसपा (BSP) से ठुकराये गये नेताओं को तहे दिल से गले लगा लिया है.

सवाल जब 24 फीसदी वोटबैंक का हो तो चाल बदलनी जरूरी हो जाता है. अखिलेश यादव जानते हैं कि पिछड़ों के साथ यदि दलितों के वोट जुड़ जायें तो विजयश्री मिलनी तय हो जायेगी. इसीलिए उन्होंने बहुजनों को साधना शुरु किया था. वे अपनी हर चुनावी रैली में ये दिखाना चाहते हैं कि जिस अभियान को बसपा सुप्रीमो मायावती ने त्याग दिया है उसे उन्होंने अपना लिया है. वे हर रैली में निजीकरण के चलते सरकारी नौकरियों के सिकुड़ने, जातिगत जनगणना कराने जैसे मुद्दे पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं. संविधान बचाने की जो बातें बसपा के नेता करते थे अब वे अखिलेश यादव करने लगे हैं. दलितों के साथ होने वाले अपराध पर वे आक्रामक तरीके से बीजेपी सरकार पर हमला बोलते दिख रहे हैं.

Mayawati min

बसपा के पुराने दिग्गजों को सपा से जोड़ा
बहुजनों को अपना बनाने के लिए उन्होंने इस समाज के नेताओं को भी अपना बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. बसपा से निकाले गये टॉप ब्रास नेताओं का सबसे बड़ा ठिकाना सपा ही है. इन्द्रजीत सरोज तो पहले से ही हैं. हाल ही में 6 विधायकों के साथ लालजी वर्मा और रामअचल राजभर ने भी सपा का ही दामन थामा है. कभी बीजेपी से सांसद रहीं दलित लीडर सावित्री बाइ फुले से उन्होंने गठबंधन किया है. आजाद समाज पार्टी (भीम आर्मी ) के चन्द्रशेखर रावण से उनकी बातचीत चल रही है.

सपा-बसपा का गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर पाया
अब सवाल उठता है कि दलित समुदाय अखिलेश यादव को कितना अपना पायेगा. यूपी के गांव-गांव में पिछड़ों और दलितों की कई जातियों के बीच एका नहीं रहा है. यही वजह रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर पाया. सपा के वोट तो बसपा को गये, लेकिन बसपा के वोट सपा को ट्रांसफर नहीं हो पाये. कुछ दलित नेता अब इस संबंध को नये सिरे से परिभाषित कर रहे हैं.

915586 untitled 2021 09 05t213025.542

सावित्री बाइ फुले ने कही ये बात
कांशीराम बहुजन समाज पार्टी की सावित्री बाइ फुले ने कहा कि दलित समाज के मन में मायावती की वो बात घर कर गयी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सपा को हराने के लिए जरूरत पड़ी तो वो बीजेपी का भी साथ देंगी. इसके अलावा संविधान को खत्म करने की जो साजिश बीजेपी और संघ कर रहा है उसके खिलाफ मायावती चुप हैं. ऐसे में अखिलेश यादव ही एक विकल्प बच जाते हैं.

अखिलेश के प्रयासों से तिलमिला रही हैं मायावती!
मायावती बीजेपी सरकार पर मायावती भले ही बहुत आक्रामक न दिख रही हों लेकिन, सपा पर वो ज्यादा अटैकिंग हैं. सत्तारूढ़ दल पर निशाना साधने के साथ-साथ वो सपा पर निशाना साधना नहीं भूलतीं. 8 नवंबर को मायावती ने तो ये भी कहा कि सपा ने हमेशा से ही दलित महापुरुषों और गुरुओं का तिरस्कार किया है. उन्होंने सपा के दलित प्रेम को नाटकबाजी तक कहा है. प्रयागराज में दलित समाज के 4 लोगों की हत्या पर उन्होंने कहा कि लगता है कि बीजेपी सरकार भी सपा सरकार के नक्शेकदम पर चल रही है. अखिलेश यादव के सेंधमारी के इन्हीं प्रयासों से मायावती तिलमिला रही हैं.

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button