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चेला भी कई बार गुरु से बड़ा बन जाता है, देखें इसका उदाहरण यहां पर

बगदाद में एक बड़े संत हुए हैं जुनैद बगदादी। बचपन से ही उनमें इंसानियत और इंसाफ को लेकर एक जज्बा घर कर गया था। संत सूरी सक्ती जुनैद के मामा थे और गुरु भी। एक बार किसी ने संत सक्ती से पूछा, ‘क्या शिष्य का दर्जा गुरु से भी ज्यादा होता है?’ संत सक्ती बोले, ‘हां, मगर तभी जब शागिर्द जुनैद हो। वह मेरा शागिर्द है, मगर रुतबे में मुझसे भी ज्यादा है।’ संत सक्ती ने जुनैद में बचपन में ही यह रुतबा देख लिया था।

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हुआ यूं कि एक बार जब जुनैद मदरसे से आ रहे थे तो रास्ते में उनके पिता रोते हुए मिले। पता चला कि पिता ने अपनी मेहनत की कमाई से कुछ हिस्सा संत सक्ती को नजराने के तौर पर भेजा था, पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया। जुनैद वह कमाई लेकर संत सक्ती की कुटिया पहुंचे और दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर से पूछा गया, ‘कौन है?’ जुनैद बोले, ‘मैं जुनैद। अपने पिता का नजराना लेकर आया हूं।’ संत सक्ती ने मना किया तो जुनैद बोले, ‘जिसने आप पर मेह की, आपको दरवेशी दी और मेरे पिता को दुनियादार बनाया, उसके नाम पर आपको इसे लेना पड़ेगा।’

Hazrat Junaid Baghdadi Ke Bachpan Ka Waqia - हज़रत ज़ुनेद बगदादी का बचपन - YouTube

अब संत सक्ती के सामने कोई चारा ना था। उन्होंने दरवाजा खोला और बोले, ‘नजराने के साथ मैंने तुम्हें भी स्वीकार किया।’ उस वक्त संत जुनैद सात साल के थे। उन्हें लेकर संत सक्ती मक्का चले गए, ताकि उनकी जड़ें और मजबूत की जा सकें। मक्का पहुंचे तो वहां संतों में शुक्राने पर बहस छिड़ी हुई थी। सबने अपनी-अपनी अक्ल से शुक्रिया का अर्थ बताया। संत सक्ती ने जुनैद से पूछा तो वह बोले, ‘शुक्र उसका नाम है कि जब अल्लाह सुख दे तो उस सुख में कोई इतना ना डूब जाए कि सुख देने वाले की अवज्ञा होने लगे।’ यह सुनते ही सारे संत बोले, यही है असल शुक्राना।

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