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कांग्रेस के पीएम पद की दावेदारी छोड़ने की बात, ‘बलिदान’ या सोची समझी रणनीति।

बेंगलुरु में विपक्षी दलों की मीटिंग में कांग्रेस ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि प्रधानमंत्री पद पाने की उसकी कोई मंशा नहीं है, कांग्रेस ने इसे विचारधारा और देश को बचाने की लड़ाई बताया है.

मीटिंग में विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का नाम ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया)’ रखा गया है. ‘इंडिया’ की अगली बैठक मुंबई में होगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि कई राज्यों में हमारे बीच मतभेद हैं लेकिन फ़िलहाल हमने उन मुद्दों को पीछे रख दिया है और अभी हमारे लिए देश को बचाना प्राथमिकता है. इसके अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिल्ली में एनडीए की मीटिंग पर भी बयान दिया है. खड़गे के मुताबिक़ एनडीए के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे और अब उसे फिर से एकजुट किया जा रहा है और उनके नेता राज्यों में जा रहे हैं. कांग्रेस ख़ुद को सत्ता का स्वाभाविक उत्तराधिकारी समझती रही है, ऐसे में यह सवाल भी खड़ा होता है कि कांग्रेस किस रणनीति के तहत त्याग के मूड में दिख रही है और पीएम पद को लेकर कोई दावा नहीं कर रही है.

UPA gets new name, next Opposition meeting to be held in Mumbai - Highlights from 26 party meet in Bengaluru | Mint #AskBetterQuestions

कांग्रेस क्यों नहीं चाहती पीएम पद?

कांग्रेस की राजनीति को क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई मानते हैं कि कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए एक तरह का बलिदान कर रही है और यह कोई जज़्बाती फ़ैसला नहीं है.

रशीद किदवई कहते हैं, “आज़ादी की लड़ाई के दौरान से ही काँग्रेस के नेता इतने समर्पित रहे हैं कि कांग्रेस के दृष्टिपत्रों में लिखा होता था ‘ए नेचुरल पार्टी फ़ॉर गवर्नेंस’. पर अब राहुल गांधी कई बार कहते हैं पहले ख़ुद को उस लायक बनाओ फिर इच्छा करो. कांग्रेस जब भी लोकसभा की 100-150 सीट लाने में सफल होती है, वह उसी दिन प्रधानमंत्री पद की दावेदार बन जाएगी.”वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि विपक्ष ने ऐसी गंभीरता साल 2014 और 2019 के चुनावों में नहीं दिखाई थी, लेकिन अब कई दलों को लगने लगा है कि अगर बीजेपी तीसरी बार सत्ता में आ गई तो उनका अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा.नीरजा चौधरी के मुताबिक़, “यह कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है, ताकि अन्य विपक्षी दलों के मन में कांग्रेस को लेकर भी डर कम हो जाए. मुझे लगता है कि फ़िलहाल राहुल और सोनिया गांधी परिस्थितियों को समझ भी रहे हैं.”वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का मानना है कि कांग्रेस का पीएम पद में दिलचस्पी नहीं दिखाना एक रणनीति का हिस्सा है, ऐसा संभव ही नहीं है कि कांग्रेस की ऐसी मनोकामना नहीं होगी.प्रमोद जोशी कहते हैं, “इसकी एक वजह और है कि कांग्रेस नहीं चाहती है कि चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी हो, क्योंकि इसमें वो पिछड़ सकती है. बजाय व्यक्ति और व्यक्तित्वों के कांग्रेस चाहती है कि यह चुनाव मुद्दों पर हो.”प्रमोद जोशी का मानना है कि इस गठबंधन का नाम भी कांग्रेस का दिया हुआ लगता है क्योंकि इसके दो शुरुआती नाम ‘इंडियन नेशनल’ कांग्रेस के नाम से मिलते हैं.

कांग्रेस का नरम रुख

बेंगलुरु में सोमवार और मंगलवार को हुई विपक्ष की बैठक में 26 पार्टियों ने हिस्सा लिया जबकि पटना में विपक्ष की पहली मीटिंग में 15 दलों ने हिस्सा लिया था. इसका मक़सद है साल 2024 के लोकसभा चुनावों में संगठित होकर बीजेपी और नरेंद्र मोदी को चुनौती दी जाए.बेंगलुरु की मीटिंग में सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य भी मौजूद थे. दीपांकर ने बीबीसी को बताया, “राहुल गांधी ने कहा है कि यह मूल रूप से विचारधारा की लड़ाई है. कांग्रेस इस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन उसका रवैया बहुत नरम रहा है.”राजनीतिक मामलों के जानकार और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार इसमें कांग्रेस की एक दिलचस्प रणनीति भी देखते हैं.पुष्पेंद्र कुमार का कहना है, “इस गठबंधन में कई अन्य दलों के महत्वाकांक्षी नेता हैं और उनके सामने गुजराल और देवेगौड़ा वाली परिस्थिति रखी जा रही है, यानि चुनाव के बाद कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है.”लोकसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिलने से साल 1996 से 1998 के बीच पहले एचडी देवेगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री बने थे. उनकी सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी थी.हालांकि पुष्पेंद्र कुमार मानते हैं कि गुजराल या देवेगौड़ा वाला दौर फिर से आएगा इसकी संभावना कम है, लेकिन यह प्रलोभन विपक्षी नेताओं को जोड़कर रख सकता है.

‘इंडिया’ नाम के पीछे क्या?

बेंगलुरु की मीटिंग के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि मुंबई की अगली मीटिंग में इस गठबंधन के ग्यारह सदस्यों की समन्वय समिति बनाई जाएगी और मुंबई में ही गठबंधन का संयोजक तय किया जाएगा.माना जा रहा है कि ‘इंडिया’ की समन्वय समिति में बड़े दलों के सदस्यों को शामिल किया जा सकता है. इनमें कांग्रेस, टीएमसी, आप, शिवसेना, एनसीपी, वाम दल और समाजवादी पार्टी जैसे दलों के सदस्य हो सकते हैं.नीरजा चौधरी कहती हैं विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम बहुत रोचक रखा है, अभी तक वो जो बात करते थे संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की वो जनता तक पहुंच नहीं पा रही थी, लेकिन ‘इंडिया’ सबको समझ में आएगा.नीरजा चौधरी के मुताबिक़, “अब विपक्ष कहेगा एनडीए बनाम इंडिया है, नरेंद्र मोदी बनाम इंडिया है. आइडिया ऑफ़ इंडिया हमारा है. अब यह आम आदमी को समझ में आएगा.”प्रमोद जोशी कहते हैं, “यह स्पष्ट है कि नया गठबंधन यूपीए नहीं है. इसमें आम आदमी पार्टी भी है, तृणमूल कांग्रेस और वाम दल भी. यह नया ग्रुप है. संभव है कि सोनिया गांधी इसकी अध्यक्ष बनें और नीतीश कुमार संयोजक.”प्रमोद जोशी का मानना है कि एक होता है टैक्टिक और एक होती है स्ट्रैटेजी, इस समय कांग्रेस जो कुछ स्वीकार कर रही है वह उसकी इच्छा नहीं, बल्कि रणनीति है और यह ‘इंडिया’ भी कांग्रेस का दिया हुआ लगता है क्योंकि इसके शुरुआती दो शब्द ‘इंडियन नेशनल’ कांग्रेस पार्टी के शुरुआती नाम से लिया गया है.पुष्पेंद्र कुमार का मानना है कि कांग्रेस अन्य दलों के नेताओं को संदेश देना चाहती है कि नए गठबंधन में सबका महत्व होगा, जो कि बीजेपी के साथ गठबंधन में नहीं दिखता है.वो कहते हैं, “उत्तर पूर्वी राज्यों की अलग परिस्थिति की वजह से हिमंत बिस्वा सरमा को ज़रूर कुछ मिल गया, वरना कांग्रेस को छोड़कर भी जो लोग गए उन्हें बीजेपी में कुछ नहीं मिला. ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही देख लीजिए.”।

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